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पृष्ठ:पुरातत्त्व प्रसंग.djvu/९६

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पुरातत्व-प्रसङ्ग


चौथी या पाँचवी सदी के हैं। इससे ज्ञात हुआ कि और भी सौ दो सौ वर्ष तक इस लिपि का रवाज भारत के पश्चिमोत्तर भाग में था।

खोदने से यहाँ अनेक प्राचीन सिक्के, मिट्टी के वर्तन और सीले, लोहे और ताँबे के अरघे, चमचे, जंजीरें और कीलकाँटे आदि निकले हैं। सोने की भी कुछ चीजे प्राप्त हुई हैं। मिट्टी के एक बर्तन के भीतर एक अधजली पुस्तक भी मिली है। वह भोजपत्र पर लिखी हुई है। संस्कृत भाषा में है। बौद्ध धर्म्म-विषयक कोई ग्रन्थ मालूम होता है। प्रायः वसन्त-तिलकवृत्त में है। खेद है, इसका एक भी पृष्ठ पूर्ण नही।

कई स्तूपों में अस्यिभस्म भी मिली है। मालूम होता है कि कितने ही छोटे छोटे स्तूपों के भीतर अस्थि-भस्म रक्खी गई थी। क्योंकि रखने की जगह तो बनी हुई है, पर अस्थिगर्भ डिब्बे या बक्स नही मिले। वे या तो नष्ट हो गये या निकाल लिये गये। स्तूप नम्बर ११A में एक छतरीदार, ३ फुट ८ इंच ऊँची, विचिन्न बनावट की एक चीज़ मिली है। वह पलस्तर की है और स्तूपाकार है। उस पर नीला और सुर्ख रङ्ग है। ऊपर कई प्रकार के पत्थर, जिनमें से कुछ रत्न सहश भी हैं, जड़े हुए हैं। जिस कोठरी के भीतर यह चीज़ मिली है वह १०॥ इंच चौकोर और ३ फुट ८॥ इञ्च ऊँची है। इस