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तक्षशिला की कुछ प्राचीन इमारतें


स्तूपाकार वस्तु के भीतर लकड़ी की एक छोटी सी डिबिया थी। वह सड़ी मिली है। उसमें मूंगा, सुवर्ण पत्र, हाथीदाँत, बिल्लौर के मनके आदि थे। उसके भी भीतर धातु की एक छोटी सी डिबिया थी। उस डिबिया के भी भीतर एक और डिबिया थी। उसी में काली काली ज़रा सी राख थी। यह राख किसीकी अस्थियो को अवशिष्ट भस्म के सिवा और क्या हो सकती है।

यदि भारत के प्राचीन खँडहरो की खुदाई के लिए गवर्नमेंट कुछ अधिक रुपया खर्च करती और यह काम कुछ अधिक झपाटे से होता तो दस ही पाँच सालो में अनेक खँडहर खुद जाते और उनसे निकली हुई वस्तुओं और इमारतों के आधार पर प्राचीन भारत का इतिहास लिखने में बहुत सुभीता होता। परन्तु, अभाग्यवश, वह दिन अभी दूर मालूम होता है।

[मार्च १९२२