पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१३३

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1 १३२० पुरानी हिंदी: (95) तरुहुँ वि वक्कल फल मूणि वि परिहणु प्रसरण लहन्ति । सामिहुँ 'एत्तिउ "'अंग्गलउँ पायरु भिच्चु गृहन्ति । तरुपो से, भी, वक्कल, ,फल, मुनि भी; परिधान (वस्त्र), प्रशन (भोजन), पाते हैं, स्वामियो से, इतना अगला (अधिक) (है कि) आदर भृत्य लेते है (= पाते है) । खाना पहनना तो जगल मे पेडो से भी मिल जाता है, स्वामी से प्रादर ही अधिक मिलता । लहन्ति-सं० लभ । एत्तिउ-एतो । अग्गलउँ-अग्गलो, पागलो स० अग्रल, राजस्थानी मे पांच पर सत्तर को । 'पाँच आगला सित्तर' कहते है । (१६) अह विरल-पहाउ जि कलिहि धम्मु । अव, विरल प्रभाव ( है ), 'ही, कलि (युग) मे धर्म । अह-अथ , जि-जो, पादपूरक । (२०) अग्गिएँ उण्हउ होइ जगु बाएं सोनल तेवें । जो पुणु अग्गि सीअला तसु उहत्तण केवं ।। प्रागी से, ऊन्हा (गरम), होता है, जग, वायु से, शीतल, त्यो ही, जो पुनि आगी से शीतल (होता है), तिसके, उप्णता, किससे (हो) ? उण्हउ--- सं० उष्णं । वाएँ-वायु से, पजाडी वाओ, पुणु-पुनि । उहत्तणु- त्तण भाववाचक का है। (२१) विपिन-आरउ जडवि पिउ तोवि त प्रारराहि अज्जु । अग्गिण दड्ढा जइवि घर तो . अग्गि कज्जु ॥ विप्रियकारक, यद्यपि, प्रिय (है), तो, भी, उसे, ला, आज, आग से दहा गया, यद्यपि, घर तो, उस (से.), अग्नि से काज ( ही होता है) विप्रियकारक बुरा करनेवाला-। पिउ--पीव, पिय । दड्ढा जलाया दाढा (रामायण) स० दग्ध Til :Rp) i

  • जिव जिवं' बंकिम लोअरगहें णिस - सामलि सिखइ ।।

तिवें ति' वम्म निभय सहर घर परितिक्खई"IT 6

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