पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१४०

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पुरानो,- हिंदी १३६ । गह, कुमारी, यह, नर, यह मनोरथ-स्थान ( है ), यो, मूर्खा (का) जीतते हुओ (का), पीछे होता है, विहान । विचार ही विचार मे रात वीत जाती है । वढ-मूर्ख सवध या ससोधन, चितंत-सोचते हुए । (४४) जइ पुच्छह घर बड्डाइ तो बड्डा घर ओइ ॥ विहलिया-जण-अन्भुद्धरणु कन्तु कुडीरइ जोइ ॥ यदि, पूछते, हो घर, वडे, तो वडे धर वे है (हैं)-विकल जनो (के) अभ्युद्धरण ( करनेवाले), कत को कुटीर में देख । वडे घर महल नही होते विह्वलित जनो के उद्धारक मेरे कंत को कुटी मे बैठा देखो--वही वडा घर है जहाँ परोपकार होता है । पुच्छह-कर्ता तुम, विहलिय-स० विहलित जोइ-जोह । . 3 आयइ लोअहो लोअगइ जाईसरइ न भन्ति । अप्पिए दिटूठइ मउलइ पिए दिइ विहसन्ति ।। ये, लोग के, लोचन, जातिस्मर (हैं ), (इसमे) न, भ्राति (है), अप्रिय ( मनुष्य ) के, देखे, (.पर) मुकुलित होते है, प्रिय के, देखे (पर) हँसते हैं ,नाईसर-जातिस्मर, जिसे पूर्व जन्म के प्रियाप्रिय की यादाहो,'यदि जाई सरइ दो पाद हो तो, जाति को-पूर्वजन्म को स्मरण करते हैं। अप्पिए दिइ-भावलक्षण सत्पमी, अप्रिय या प्रिय ( मे ) दीठे (देखे हुए) में 1 (४६) सोसउ म सोसउ चिच्चन उपही वडवानलस्स कि तेरण । ज जलइ जले जलयो अएण वि किं न पज्जत्तं ॥ सूखो, न, सूखो, भी, उदधि, वडवानल का, क्या, उससे, जो, जलता है,जल मे ज्वलन (भाग), इससे, हो, क्या, नही, पर्याप्त (हुआ) ? कठिन या असभव कार्य सिद्ध न हो तो उद्योग में ही सफलता है ! सोसइ-सूसो! च्चिन-- निश्चय । पाएग-इससे (४७) आयहो दड्ढ-कलेवरही ज वाहित त सारु । जइ उट्टन्भइ तो कुहइ अह डज्जड तो छार ।। 1