पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/४७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पुरानी हिदी को जागइ तुह नाह चित, तु हालेइ चक्कवइ लउ । लकहले वाहमनगु निहालई करणउत्तु ॥ पाठातर---की, हालतु, लककाले, चक्कवइ लहु । अर्थ-सिद्धराज को समुद्र की ओर निहारते देख कर चारण कहता है कि नाथ । तुम्हारे चित्त (की बात) को कौन जानता है ? तू चक्रवर्ती (पद) पाने की चेष्टा कर रहा है, कर्ण का पुत्र (सिद्धराज) लका फल के (लेने के लिये) वाह का मार्ग देख रहा है। हालेइ---चलता है (स० जघालयति, शास्त्री) लउ-पाने को (स० लब्ध, शास्त्री) । लकहले-लकाफल का। वाह जहाजो का चलना । निहालइ- देखता है। (स० निभालयति) पजादी में निहालना-प्रतीक्षा करना। करणउत्तु-कर्ण + पुन, राजस्थानी करणोत । पिता के नाम के गौरव से पुन्न को सवोधन करना चारण कविता (डिगल) का प्रसिद्ध लक्षण है। (२०) सिद्धराज जयसिह ने वर्द्धमानपुर (बडवाण) के आभीर राणक (राना) नवधन' पर चढाई की और किले की दीवाल तोडकर उसे द्रव्य की वासरिगयो (थलियो) की मार से मार डाला । नवधन की रानी के शोकवाक्य ये है- सहरु नहीं स राणइ कुलाईउ नकुलाइ । सइ सउ षङ्गारिहिं प्राणकइ वइसानरि होमीइ ।। पाठातर-सयरू, नहिं, राण, न कुलाई न कुलाई, सई, पाण, किन वइसारि होमिया। अर्थ-हे सखियो, वह राणा भी नहीं है, (हमारे) कुल भी अव नकुल (= नीच कुल) है, (मैं) सती खेंगार के साथ प्राणो को वैश्वानर (अग्नि) मे होमती हूँ। सईरु--सखियो, र बहुवचन । सइ-सती। प्राणकइ-प्राण के = को । वइसानरि-वैश्वानर मे, राजस्थानी वैसादर । होमीइ-होमती हूँ। होमिया होमे। १. गिरनार के चूडासमा यादवो की राजावली मे कई नवघरण नामक राजाओं का उल्लेख है, सभव है यह चोया नवधन हो और खेंगार उसका उपनाम हो। फार्वस ने रासमाला में खेंगार को नवधन का पुत्र कहा है, बेंगार औनवार न नाम इन राजानो मे कई बार आए हैं। ---