पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/८९

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म६ पुरानी हिदी 1 (५०) ता मुक्कत गउ दित्तु तिण कवलु कोसहि हत्य । सी पेच्छतह तीड तसु खित्तु खालि अपसस्थि ॥ ६१ तव, मुक्त किया ( चोरो ने ), (वह ) गया; दिया, उसने, कवल, कोसा के, हाथ, वह, देखते, हुए, उसने उसके, फेंका, खाला मे, अप्रशस्त मे। तिण-पंजाबी तिन्नी, पेच्छत-स० प्रेक्षत, डि० पेखन्त, खाला खेली, गदे पानी की मोरी। ( ५१ ) ममणू दुम्मरणु भइ तो बहुमुल्लु कवलरयण कीस कोसि पई क्खालि खित्तउ देसतरि परिभमिवि मह महत दुवखेख पत्तउ कोस भरणइ महापुरिस तुहु केवल सोएसि । जं दुल्लहु संजम-खणु हारिस त न मुणेसि ॥ १२ ॥ श्रसरण दुर्मना ( होकर ), कहता है, तब, 'यह, बहुमूल्य कवल रत्न, कैसे, कोसा! तेने खाली मे, फेंका, देशातर मे, परिभ्रमण कर, मैं (ने) बहुत दुख से, प्राप्त किया, कोसा, कहती है, 'महापुरुष । तू कवल को सोचता है, जो दुर्लभ, सयम (का) क्षण, हारा (खोया) है, उसे नही जानता' ॥ खित्तउ, गत्तउ-खित्तो, पत्तो, क्षिप्त प्राप्त । मुण =जानना देखो (३५)। (७) पृ० ४७१-७२, पाठ छप्पय, मागधो के गाए, जिन्हे सुनकर प्रात काल कुमारपाल जागता था। इनमें से एक नमूने की तरह यहाँ देकर उसका वर्तमान हिदी के अनुसार अक्षरांतर कर दिया जाता है। यह पहले कहा जा चुका है कि पुरानी कविता से सोमप्रभ की अपनी कविता क्लिष्ट है तघा नमनो से पाठको ने भो यह जान लिया होगा। यह कविता डिंगल कविता के ढग की है और पृथ्वीराज रायमे के कल्पित समय से कुछ वर्ष पहले की है। इसका वर्तमान हिंदी में परिवर्तन चाहे कुछ कठिन दीखे पर खड़ी बोली के प्रसिद्ध वर्तमान कवियों की रचना से जिसमे कभी कभी 'था', 'है' के सिवाय कोई पद हिंदी का नहीं मिलता, सभी संस्कृत के तत्सम होते है, अधिक कठिन नहीं है..-