पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/१०२

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

नारायण-प्रयावली देती है । यह तो हम प्रत्यच्छ दिखा देंगे। किनारे नहाने को खड़े हो तो पांव के नीचे गंगा बहती हैं, यह विष्णु भगवान का चिन्ह है । डुबकी लगाने के समय शिर के ऊपर से धारा बहती है, यह शिवजी का अंग है। बाहर निकलते ही मुख में वेद का कोई मंत्र व वेदवेद्य परमेश्वर का कोई नाम होता है, जो ब्रह्मा का हृदय है। क्यों, तीनों हो गये । हमारे मित्र मुंशी कालीचरण साहब सेवक कवि की एक सर्वया इसी मतलब में है। यथा-"सेवा तीर 4 ठाढ़ो भयो पद हूँ बहि विष्णुता गंग दई है । न्हात समय सिरते कढी ता छन शंकर लौं शुभ शोभा भई है ।। बाहर आय पढ़े श्रुति मंत्र तब विधि को पद सांचो हई है। आय त्रिगामिनि तीर त्रितापिहु होत सदेह त्रिदेव मयी है ॥ १॥ वरंच हमारे रसिकों को इन्द्र पदवी अधिक प्राप्त होती है क्योंकि हजार आंखें मिलती हैं। ( इसका अर्थ समझना मुश्किल नहीं है ) । अहाहा ! 'नजर आता है हरसू गर परोयो हूरो गिलमां का। मिल है राहे गंगा में हमें रुतबा सुलेमां का।' खं० ३, सं० ९-१० (१५ नवंबर-दिसंबर ह० सं० १) नागरी महिमा का एक चोज हमारे यहाँ की बोली का एक यह भी ढंग है कि बहुत शब्दों के साथ आदि में अ, स, और कभी २ फ मिला देते हैं, जिससे एक निरर्थक शब्द बन जाता है, पर अच्छा लगता है । रोटी ओटी, आदमी सादमी इत्यादि । इस रीति से कई भाषाओं के निरर्थक शब्द उन भाषाओं की कलई खोल देते हैं, पर हमारी नागरी देवी की महिमा ही गाते हैं । देखो न, अंगरेजी संगरेजी। 'संगरेजा' कहते हैं पत्थर का महीन टुकड़ा या कंकड़। उसका भी लघु रूप 'संगरेजी' समझ लो । न मानो तो माधुर्य का गुण ढुंढ़ो, उसमें कही है ? टिट्टे क्यटय्यट का खर्च है। फारसी आरसी ( आलसी), सैकड़ों पोथी छान डालो, उद्योग की शिक्षा बहुत कम, ज़ोफ नातवानी के मजमून लाखो ! ___ अरबी सरबी, ( मानी नदारद ), उरदू सुरद, (मानी नदारद ), पर "षिणो' जोड़ लो तो सुरदूषिणी हो जाय । ____ लेकिन संस्कृत अस्कृत-जिसमें ईश्वर की महिमा या ऋषियों की मदार बुद्धि का अंश हर तरह मौजूद । नागरी आगरी-आगर सद्व्यक्तियों का गुण अथवा सागरो। राम झूठ न बुलाव तो इस दीन दशा में भी सब गुण का छोटा सागर ही है। क्यों, कैसी कही ? खं० ३, सं० ११ ( जनवरी ह. सं० २)