पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/११८

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बालक __ यह शब्द भी क्या हो प्यारा है कि नाम लेते ही हृदय प्रमुदित हो जाता है ! 'लकार' का ललित अक्षर, बो वर्णमाला भर का अमृत है, प्रायः सभी भाषाओं में इस अर्थ के बोधक शब्द में रक्खा गया है। संस्कृत में बालक वा बाल, भाषा में लड़का, अंगरेजी में ल्येड और फारसी में तिफल प्रमाण के लिये देख लीजिए । जब कि कुकर शकरादि के लड़के ( बच्चे । को देख के एक रूप की प्रसन्नता होती है तो मानवशिशु का तो कहना ही क्या है । ऐसा भी कोई है जो अपने या अपने मित्र के वा अपने बंधु के वा अपने पड़ोसी के वा अपने देश के बालक को देख के प्रसन्न न होता हो ? ऐसा भी कोई है जो सर्वथा रंजा पुंजा होने पर भी बालक न होने से चिंताकुल न होता हो ? ऐसा भी कोई है जो निस्संतान लोगों पर तरस न खाता हो ? हम तो जानते हैं, यदि लाखों में कोई एक होगा भी तो या तो महा अलौकिक अथवा महापाषाण-हृदय होगा अहा हा ! जिनके मुख से अशुद्ध, अलज, अनमेल, अस्पष्ट अक्षर भी प्यारे लगते हैं, जिनके वे सिर पैर के काम भी अच्छे जान पड़ते हैं उनकी अच्छाई का क्या कहना ! दुनिया भर के छल, कपट ईर्षा, द्वेष, चोरी जारी इत्यादि जितनी बुरी बातें हैं उनसे इन्हें कुछ प्रयोजन ही नहीं। भय, लजा, चिंता आदि जो जगत रूपी जाल के फंदे हैं, उन्हें यह जानते भी नहीं। शरीर रक्षा के लिये जो कुछ उदरपूर्ति मात्र को मिल जाय तो बस जीवनमुक्त हैं। सच्चा तत्वज्ञान जो बड़े २ महात्मा का लक्षण है वुह यही जानते हैं ! सच्चे प्रेम, सच्ची प्रतिष्ठा, सच्ची श्रद्धा के पात्र माता-पिता है, यह बात वैदिक, जैन, मुसलमान, क्रिस्तान, स्वतंत्राचारी और नास्तिक सब मानते हैं पर ठीक २ इसका नमूना आप इन्ही में पाइएगा। दरिद्रिणी माता के आगे बड़े लाट साहब भी तुच्छ हैं ! आप चाहें जिसको डरें, चाहे जिसका मुलाहिजा करें, उनकी बला से ! क्या यह तत्वज्ञान नहीं है ! सूरज क्यों घूमता है ? चंद्रमा परसों खरबूजे की सो फांक था, आज टोपी सा काहे हो गया ? कल तो यह फूल मुंह मूंदे था, आज काहे . खिल गया ? इत्यादि प्रश्न, जो बहुधा बालकगण अपने मां बाप से किया करते हैं, क्या बुद्धि इन प्रश्नों को पदार्थ विज्ञान का मूल न कहेगी? विचार कर देखिए, बड़े २ विद्वान्, बड़े २ वीर,जिनका आज नाम लेते हृदय साष्टांग दंडवत करता है वुह भी कभी बालक हो थे। लड़कपन बादशाही है ! हां बेशक, तृष्णाचेह परित्यक्ता को दरिद्रः क ईश्वरः । इन्हें न धन चाहिए, न श्री चाहिए। फिर क्या, चाहो ऋषि समझो, चाहो रामा समझो, चाहो देवता समझो, क्योंकि हमारे भगवान बालमुकंद, भैरव, स्वामिकार्तिक, सनकादिक इसी रूप में हैं। परमेश्वर का एक सर्वोत्कृष्ट गुण भी इनमें है, अर्थात जो इनसे