पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/१५१

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न्याय सवार साहब तो घोड़े की पीठ पर चढ़े, उसे कोड़ा मारें, पांव से एड़ मारें, मुंह में लगाम लगावें, जब चाहे तब बांधे, जब चाहे तब दौड़ावें पर यह कोई न कहेगा कि सवार कठोर हृदय है,अन्याशी है । हां,यदि घोड़ा कहीं लात फटकार दे या काट खाय या सवार को पटक दे तो सबके मुंह से सुन लीजिए, घोड़ा बदलगाम है, कटहा है, लतहा है। वाह रे न्याय ! सिंह व्याघ्र इत्यादि बलवान जीव होते हैं। वे जैसे हरिणादि को मार गिराते हैं वैसे ही कभी २ मनुष्य पर भी चोट कर देते हैं, इस लिए वे दृष्ट जन्तु हैं । उनको मार डालना पाप नहीं है, बहादुरी है। पर मनुष्य महाशय बकरा मार खायं, मछली हजम कर जायं, चिड़ियों को भोग लगा जायं, यह कहने वाला काई न हो कि निर्दयी हैं। वाह रे इसाफ ! यदि नौकर बिचारा कोई वस्तु उठाना भूल जाय और मालिक साह गोकर खा के गिर पड़े तो तो फरमागे, 'अंधा है, नालायक है, चीज को ठीक ठौर पर नहीं रखता, पर तोड़ डाला'। पर जो कहीं मालिक साहब की वैपी ही असावधानता से नौकर ठोकर खा जाय तो भी आप यह न कहेंगे कि 'भाई हमें क्षमा करो, हमारी गफलत से तुम्हें चोट लग गई। बरंच झुंझला के कहेगे, अंधा है, देख के नहीं चलता।' कहां तक कहिए, यदि हम कभी दुःख पा के, झिझला के ईश्वर को कोई बात भी कह बैठे तो मूरख, नास्तिक, पापी इत्यादि की पदवी पावें और आप हमारे बाप, भाई, बंधु, :बांधव, इष्ट मित्रादि का वियोग करा दें। धन, मान, आरोग्य अथवा प्राण तक हर लें तो भी हमारे ही कर्मों का फल है। वह तो जो करेंगे हमारे भले ही को करेंगे ! ऐसे २ लाखों उदाहरण सब काल, सब ठौर में मिला करते हैं जिस से हम ऐसे मुंहपट्टों का सिद्धांत हो गया है कि न्याय या इन्साफ या जसटिस एक शब्द मात्र है, जो खुशामदी लोग समर्थ व्यक्तियों के लिए कहा करते हैं। वास्तव में क्या न्याय, क्या दया, क्या वात्सल्य, सब प्रेमस्वरूप परमात्मा के गुण हैं, मनुष्य बिचारा उनका हठ कहां तक करेगा? महाराज भरत (जिन्होंने प्रजा को सताने के अपराध में अपने नौ लड़कों का शिर काट लिया था), बादशाह नौशेरवां (जिन्होंने एक बुढ़िया की फरियाद पर अपने पुत्र को बध की आज्ञा दी थी ) इत्यादि नाम केवल उपमा के लिए हैं। यदि लोग कभी हुए भी हों तो उन्हें हम संसारियों में नहीं गिन सकते । जगत की रीति यही है कि यदि आप असमर्थ हैं तो दूसरों को न्यायो धर्मात्मा, गरीबपरवर बना के अपना मतलब गांठते रहिए। यदि कभी परमेश्वर की दया, नसीबे के जोर या हिम्मत की चाल इत्यादि से आप भी कुछ हो जाइएगा तो हम लोग इन्ही विशेषणों के साथ आप का नाम लिखा और कहा करेंगे। यकीन है यह शब्द धरती की पीठ पर इसी भांति धारा प्रवाह रीति से बना रहा है वैसे ही बना