पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/१८३

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बालशिक्षा ] वे अभी किसी शिक्षा सम्बन्धी विषय को नहीं जानते और जो बात उनसे, निम रीति से, जिन शब्दों में, कही जायंगी वे उन्हें ज्यों का त्यों सुनें ममझेंगे। अतः शिक्षा के मुख्य पात्र बालक ही हैं। इसके अतिरिक्त मयाने लोगों को कुछ न कुछ सारग्राहिणी बुद्धि होती है, उनसे चाहे जैसी टेढ़ी सोधी औरेजी भाषा मे कोई बात कह दीजिए वे उसका मुख्य तात्पर्य यथाशक्ति समझ सकते हैं। पर बालक बहुधा बात की ध्वनि को म समझ के केवल शब्दार्थ ही समझ सकते हैं। यदि किसी बालक से कहा जाय कि पृथिवी का आधार गऊ है तो वुह यह न समझेगा कि पृथिवी के सर्वश्रेष्ट निवासी मनुष्य । को खाना कपड़ा गऊ ही के दूध घी तथा गऊ पुत्र के उपजाए अन्न, रुई आदि से मिलता है, पर वुह बालक समझेगा कि धरती को कोई गऊ अपनी पीठ अथवा सोग पर साके है। अतः बालकों को जो बात समझाना हो वुह बहुत सरल रीति से कहना चाहिए । इसके सिवा बालक अभी अपने माता पिता तथा मुख्य साथियों के सिवा अपना घर मुहाल तथा दो चार सड़कों के सिवा दुनिया क्या है जानते भी नहीं हैं, इसलिए उन्हें सभी प्रकार की शिक्षा की आवश्यकता है। धर्मशिक्षा, नीतिशिक्षा, व्यवहारिक्षा, शिष्टाचार शिक्षा, उपयोगी भाषाओं की शिक्षा. इतिहास, गणित, इत्यादि ऐमो कोई शिक्षा नहीं है । उनके लिए आवश्यक न हो। और हम देखते हैं तो पूर्ण रूप से उप- युक्त पुस्तकें अभी हमारे देश के अभाग्य से यहां बहुत ही थोड़ी हैं, अतः यह कर्तव्य ( बालशिक्षा ) यदि अकेले हमी लिखें ( क्योंकि दूसरे लेखक अभी इस ओर बहत हो कम झुके हैं ) तो कितनी कठिनता पड़ेगी। दुनिया भर की बातें लिखना और अनि ही सरल भाषा और भाव में लिखना थोड़े दिन का और सहज काम नहीं है। यही बातें सोच के अब तक इस विषय में हाथ नहीं डाला । पर अब इधर मित्रगण हुलियाते हैं। कि लिख । और हम भी समझते हैं कि इसी नई पौध की भलाई के लिए हमारी और हमारे सहयोगियों को मुड़ धुन है, फिर इन प्यारे बालकों के उपयुक्त बातें क्यों न लिम्वी जायं । अस्तु हम लिखेंगे। पर बहुत दिन तक थोड़ी २ बातें लिखेंगे क्यों कि यह विषय अन्य विषयों की भांति नहीं है। दूसरे ग्रन्थकारों, सम्पादकों और कवियों से भी बिनय. है कि हमारा साथ दें, क्योंकि वे स्वयं विचार सकते हैं कि इसकी कितनी अधिक आव श्यकता है। भगवान बालमुकुन्द, नन्दजिरबिहारी, जानुप्राणिचारी, दधिमावन आहारी हमारी सहाय करें । जानना चाहिए कि बालकों की सम्पूर्ण शिक्षा उनके माता पिता और गुरु पर निर्भर है। लिखा भी है कि 'मातृमान्पितृपानादार्यवान्पुरुषोवेद' । अतः हम पहिले माता, पिता और आचार्य के लिए कुछ उपयोगी बातें लिखते हैं । बालकों को पहिले २ और अधिकाधिक काम माता से पड़ता है अतः माता का परम धर्म है कि अपने संतान को सुशिक्षित करें। पर खेद है कि हमारे देश में स्त्री शिक्षा का अभाव सा है अतः माता स्वयं अशिक्षिता हैं, वे लड़कों को क्या शिक्षा देंगी। पर हो,. पिता को योग्य है कि बालक पर भी ध्यान रखें और उनकी माता पर भी। ( यदि) हमारी आर्यललनागण जब तक लड़का दूध पिए तब तक मिरच खटाई तेल इत्यादि रोमन