पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/१८२

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

१६० [प्रतापनारायण-प्रथावली पूछो तो खुशामदी भी एक प्रकार के ऋषि मुनि होते हैं। अभी हमसे कोई जरा सा नखरा करे तो हम उरद के आटे की भांति ऐंठ जायं। हमारे एक उजड्ड साथी का कथन ही है कि 'बरं हलाहल पानं सद्यः प्राण हरं विषम् । नहि दुष्ट धनाढ्यस्य भूभृङ्ग कुटिलाननः' । पर हमारे खुशामदाचार्य महानुभाव सब तरह की निदा, कुबातें सहने पर भी हाथ ही बोड़ते रहते हैं। भला ऐसे मन के जीतने वालों के मनोरथ क्यों न फलें । यद्यपि एक न एक रीति से सभी सबकी खुशामद करते हैं, यहां तक कि जिन्होंने सब तज हर भज का सहारा करके बनवास अंगीकार किया है, कंद मूल से पेट भरते हैं, भोजपत्रादि से काया ढकते हैं उन्हें भी गृहस्थाश्रम की प्रशंसा करनी पड़ती है फिर साधारण लोग किस मुंह से कह सकते हैं कि हम खुशामद नहीं करते। बरंच यह कहना कि हमें खुशामद करनी नहीं आती यह आला दरजे की खुशामद है। जब आप अपने चेले को, अपने नौकर को, पुत्र को, स्त्री को, खुशामदी को नाराज देखते हैं और उसे राजी न रखने में धन, मान, सुख, प्रतिष्ठादि की हानि देखते हैं तब कहते हैं क्यों? अभी सिर से भूत उतरा है कि नहीं ? अक्किल ठिकाने आई है कि नहीं ? यह भी उलटे शब्दों में खुशामद है । सारांश यह कि खुशामद से खाली कोई नहीं है पर खुशामद करने की तमीज हर एक को नहीं होती। इतने बड़े हिदुस्तान भर में केवल चार छः आदमी खुशामद के तत्ववेता हैं। दूसरों की क्या मजाल है कि खुशामदी की पदवी ग्रहण कर सकें । हम अपने पाठकों को सलाह देते हैं कि यदि अपनी उन्नति चाहते हो तो नित्य थोड़ा २ खुशामद का अभ्यास करते रहें । देशोन्नति फेशोन्नति के पागलपन में न पड़ें नहीं तो हमारी ही तरह भकुआ बने रहेंगे । खं० ५, सं० ५ ( १५ दिसंबर, १० सं० ४) बालशिक्षा इस विषय पर लिखने का हमने कई बेर विचार किया पर कई बातें सोच के रह गए । इन दिनों हमारे परम सहायक श्रीस्वामी मंगलदेव संन्यासी महानुभाव की आज्ञा और कई एक मित्रों के अनुरोध से फिर इच्छा हो आई कि लिखा करें पर बुद्धिमान लोग समझ सकते हैं कि यह विषय अत्यन्त आवश्यक है,बहुत सोच समझ के लिखने का है । क्योंकि और लोगों को शिक्षा करना शिक्षा नहीं है केवल उनका मन बहलाना मात्र है। जिन्हें उस विषय की रुचि अथवा ज्ञान नहीं है वे न सुनेंगे न देखेंगे और जो रसिक हैं वे स्वयं उन बातों को जानते ही हैं। उन्हें शिक्षा की क्या आवश्यकता है ? हो, हमारी बहुत सी बातों में से जो दस पांच बातें उन्हें रुचेंगी वे प्रसन्न हो जायंगे वा उनमें दृढ़ हो जायंगे । तो शिक्षा काहे को जी बहलाव हो ठहरा । पर बालकों के साथ ऐसा नहीं है।