पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२४५

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सोश्यल कांफरेंस ] २२३ सोग क्या पाया कर सक्ते हैं कि हमारे परिश्रम से यह कुछ उपकार लाम कर सकेंगे जो भली बात की महिमा ही नहीं जानते, भलाई करने वालों को माननीय ही नहीं मानते, उनसे वे लाभ उठा सकेंगे ? हाय, कहते हुए कलेजा फटता है कि श्री बाबू हरिश्चंद्र के अमूल्य ग्रंथों को महाराजकुमार श्रीरामदीन सिंह (खड्गबिलास प्रेस बांकीपुर के स्वामी) ने प्रकाशित करके दो वर्ष तक सहस्त्रों रुपये खाये, महान् परिश्रम किया पर अंत में जब देखा कि केवल बारह ग्राहक हैं तो निराश हो के बैठ रहे। क्या भारत भूमि इतनी निर्जीव हो गई कि उसके बीस कोटि संतान में से हरिश्चंद्र कला के लिये दो तीन सौ मनुष्य भी वर्ष भर में ६ रुपये न दे सकें। बाबू रामदीन सिंह को हम कुछ नहीं कह सकते, उन्होंने बित बाहर साहस दिखलाया, सर्कार को भी कुछ कहना व्यर्थ है कि उसने ८० कापियां खरीदने से क्यों मुंह मोड़ा । उसे हमारी भाषा से ममता हो क्या है । दो वर्ष सहायता दो वही क्या थोड़ा अनुगृह था। पर जिन लोगों को हिंदी की रसिकता का अभिमान है, जिन के विचार में हरिश्चंद्र का संमान है उन्हें इससे बढ़ के सना का विषय क्या होगा कि उनके जीते जी उनको प्यारी भाषा के परमाचार्य, उनके प्रेम के परमाधार, नहीं २ परमाराध्य के जन्म भर का परिश्रम इस दशा को पहुंचे । हा धिक! या कोई कमर बांधने वाला नहीं है ? फिर किस बिरते पर बड़े २ मनमोदक बनाये जाते हैं ? यदि किसी को कुछ भी पक्ष हो तो सब से पहिले 'कला' के पुनः प्रकाश का उद्योग करे अथवा अन्य बातों का नाम लेना छोड़ दे नहीं तो संसार उपहासपूर्वक कहेगा कि मुलन्नास्ति कुतः शाखा ! खं० ६, सं० ५ ( १५ दिसंबर ह० सं० ५) सोश्यल कान्फरेन्स जैसे राजनैतिक विषयों के संशोधनार्य नेशनल कांग्रेस की आवश्यकता है वैसे ही सामाजिक सुधार के निमित्त सोश्यल कान्फरेन्स की भी आवश्यकता है। पर परमेश्वर की दया से हमारी जातीय महासभा ने तो पांच वर्ष में बहुत कुछ ( भाशा से अधिक ) योग्यता प्राप्त कर ली और निश्चय है कि बों ही उत्तरोत्तर वृद्धि करती रहेगी। इसके द्वेषियों ने जब प्रसिद्ध किया कि यह केवल बाबू कांग्रेस अथवा हिन्दू कांग्रेस है तब इसने एक से एक प्रतिष्ठित मुसलमानों को संग लेके दिखला दिया कि यह कथन मिरा निर्मूल है । जब यह उड़ाया कि सर्कारी कर्मचारियों में से कोई इसका सहानुभूति करनेवाला नहीं हैं तब अब की बार श्रीमान् सर डब्ल्यू बेडर बन महोदय ने सभापति के आसन को शोभित करके इस कुतकं की भी जड़ काट दी। पारसाल जब इसके विपक्षी बरसात के मेढकों की भांति ऐसे बढ़े थे कि जान पड़ता है था कि कुछ होने ही न पावेगा तब महासमाज ने-'जस २ सुरसा बदन बढ़ावा, तासु दुगुन कपि रूप दिखावा'-का उदाहरण दिखला