पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२८१

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सत्य ] २५९ इतरों की खुशामद करनी पड़ती है, बाते कुबातें सहनी पड़ती हैं, व्यथं एक २ के चार रुपए लगाने पड़ते हैं, घर बाहर के काम छोड़ के, नीद भूख से मुंह मोड़ के, दिन रात इधर से उवर निरी कल्पित आशा के लिए दौड़ना पड़ता है वही बातें सो विश्वा उप- जेंगी नहीं और उपजी भी तो ऐसी सहज रीति से सिमट जायंगी कि मानों खेल ही मात्र थी। यही नहीं सोश्यल कान्फरेंस तथा नेशनल कांग्रेस इत्यादि बड़ी सभागों के बड़े २ मनोरथों की सिद्धि एवं बड़े २ अभावों की पूर्ति में भी इन छोटी २ सभाओं का बड़ा भारी प्रभाव पड़ेगा, बड़े २ कठिन काम सहज में हो सकेंगे और प्रत्येक जाति, प्रत्येक समुह के प्रत्येक व्यक्ति को बड़ी भारी शक्ति का सहारा रहेगा । और यदि यह दूसरों को पंचायतों के साथ किसी प्रकार का विवाद न रख के काम पड़ने पर उन्हें भी तन मन धन से सहायता देने लेने में लगाई जाय तो क्या ही कहना है । सोने में सुगंध अथवा बाघ और बंदूक बांधे वाली लोकोक्ति थोड़े हो दिनों में प्रत्यक्ष दिखाई देने लगेगी और सब के सब दुःख दरिद्र आप से आप दूर हो जायंगे। पर तभी जब आज कल को नाई सब के सभी अपने को डेढ़ सयानों में न समझ के, अपनी ही बात रखने का हठ न रख के, द्वेषियों का उत्तर द्वेषभाव से न दे के, सरलता, सहनशीलता एवं सत्यता के साथ अपनों को अपना बनाने का प्रयत्न करेंगे और हमारे इस मूल मंत्र पर दृढ़ विश्वास कर लेंगे कि सर्वशक्तिमान जगदीश्वर के प्रत्यक्ष प्रतिनिधि स्वरूप पंच हैं, उन्ही के आराधन से सर्व सिद्धि हस्तगत होती है एवं उनकी सच्ची तथा सत्यफलदायिनी उपा- सना का एक मात्र मार्ग, अद्वितीय सिद्ध पीठ, सर्वानुमोदित विधि पंचायत है। खं० ७, सं० १, २ ( १५ अगस्त-सितंबर ह० सं० ६ ) सत्य जिस धर्मोपदेशक एवं नीतिशिक्षक के मंह सुनिए यही सुनिएगा कि 'सत्यमेव जयते नानृतम्', 'सत्यानास्ति परोधर्मः', 'सत्येनास्ति भयं क्वचित', 'सांच को आंच नहीं', 'सांच बरोबर तप नहीं' इत्यादि पर हम कहते हैं यह बातें केवल सतयुग के लिए थी, नहीं तो कब त्रेता में दशरथ महाराज सरीखे धर्मतत्वज्ञ ने कैकेयी जी से बचनबद्ध हो कर रामचन्द्र जी का बन गमन, सच्चे जी से, प्रसन्नतापूर्वक न चाहा । गोस्वामी तुलसी- दास जी कहते हैं-'राव राम राखन हित लागी,बहुत उपाय कीन्ह छल त्यागी।' द्वापर में धर्मावतार युधिष्ठिर जैसे सत्यवादी ने रणक्षेत्र में 'नरो वा कुंजरः' कह दिया, तब दूसरे किस मुंह से सत्य के निर्वाह का आग्रह कर सकते थे । विशेषतः इस कलिकाल में हमारे तुम्हारे समान साधारण जीवों को सत्य बोलने का प्रण (प्रण कैसा इच्छा) करना भी ऐसा है जैसे टिटिहरी नामक पक्षी का इस विचार से पांव उठा के सोना, कि बादल गिर पड़ेगा तो बच्चे कुचल जायंगे, इस से पांव ऊचे किए रहना चाहिए, जिसमें