पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२९६

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

२७४ [ प्रतापनारायण-प्रथावली बिना किसी पुष्ट प्रमाण के उनका कथन सबको मान लेना कुछ भी आवश्यक नहीं है। इधर जिनके यहां ब्रह्मा से सृष्टि का आरंभ ठहराया जाता है उनके शब्द प्रमाण से स्पष्ट विदित है कि ब्रह्मा ब्राह्मण अर्थात् आर्य थे (वा है)। वे किसी दूसरे देश से यहां न आए थे। कानपुर के निकट ब्रह्मावर्त में उन्होंने यज्ञ किया था और उनके पुत्र .:मनु जी, (जिनकी बनाई मनुस्मृति विद्यमान है ), जो मानव जाति के मूल पुरुष हैं, -अयोध्या के राजा थे और नैमिषारन्य में तप किया था। यों शास्त्रार्थ के आगे सभी देश के इतिहासों में गड़बड़ाध्याय है पर पता लगाने का पुष्ट उपाय यही है कि जहाँ का इतिहास जानना हो वहीं के बहुधा पुराने ग्रंथों तथा बचनों से ढूंढा बाय। दूसरे लोगों का अनुमान बहुधा भ्रांतिमूलक ही होता है। इस न्याय से हिंदुस्तान सदा से हिंदुओं का है और हिंदू यदि किसी दूसरे देश से आए होते तो उनके प्राचीन ग्रंथों में उस देश का कुछ विवरण तथा इस देश के आदिम निवासियों की भाषा में यहां का माम ग्राम अवश्य लिखा होता। क्योंकि इसमें कोई भी संदेह नहीं है कि सबसे पहिले लिखने, पढ़ने, कृषि, बाणिज्यादि करने में इन्ही ने सबके आगे कदम बढ़ाया था। सारांश यह है कि आज हम किसी दशा में क्यों न हों अथवा हजार पांच सौ वर्ष पूर्व कैसा ही दुःख सुख क्यों न भोगते रहे हों, पर हिंदुस्तान हमारा है, क्योंकि हम हिंदू हैं। यद्यपि मुसलमान, ईसाई, फारसी सब यहाँ रहते हैं पर कहलाते हिंदुस्तानी ही हैं जो नाम हमारे नाम के योग से बना है। हमारा राजा कोई हो, कही का हो, पर जब वह स्वयं अथवा उसके कुटुंबी वा सबाती यहां कुछ दिन के लिए भी निवास स्वीकार करेंगे तो हमारे ही नाम के साथ परिचित होने लगेंगे क्योंकि हम आर्य हैं और यह देश हमाग आवतं हैं। हम हिंदू हैं और यह देश हमारा स्थान है । यह भारत है और हम यहाँ के मुख्य निवासी हैं। दूसरे लोग केवल गौण रीति से भारतीय कहलावें पर मुख्य भारतीय हमी हैं जिनके लाखों पुरखे भारत में हो गए और परमेश्वर चाहेगा तो आगे होने वाली लाखों पीढ़ियां भारत हो में बीतेंगी तथा हमारी ही उन्नति अवनति का नाम भारत की उन्नति अवनति है, था और होगा, क्योंकि राजा, राज कर्मवारी, राज जातीय, धनी, विद्वान एवं गुणवान इत्यादि यद्यपि सुखित, प्रतिष्ठित और शक्ति- समन्वित होते हैं पर अतः उनकी संख्या बहुत थोड़ी होती है। इससे उनके सुख, दुःख संपत्ति विपत्ति आदि को देश का सुख दुख, संपत्ति विपत्ति नहीं कहते । वे चाहे यहां के निवासी चाहे प्रवासी, उनका नाम देश नहीं कहा जा सकता। हां, देश का एक विशेष अंश भले ही बने रहें पर साधारण समुदाय के लोग जिनका बल, विद्या, धन, मान आदि सर्वसाधारण से अधिक नहीं होता पर संख्या तीन चौथाई से भी कुछ अधिक ही होती है इससे वही देश के अस्थि मांस कहलाते हैं, बरंच उन्ही का नाम देश है और उन्ही की दशा देश की दशा कालाती है। इस रीति से आंखें पसार के देखिए तो प्रत्यक्ष हो जायगा कि हिंदुस्तान हिंदुओं ही के बनने बिगड़ने से बन बिगड़ सकता है। जिन दिनों हिंदुओं के सौभाग्य का सूर्य पूर्ण रूप प्रकाशमान या उन