पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३५

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गुप्त ठग ] हे प्रिय देशहितैषीगण ! ऐसा सदा नहीं हुआ करता। इसमें भी उस सर्वशक्तिमान ने हमारे लिये कुछ भलाई समझी होगी। तुम यदि भारतमाता के सच्चे सुपुत्र हो तो निभ्रम हो के देशोदार के प्रयत्न में लगे रहो। उत्तम जन सहस्रों दुःख उठाते हैं पर अपने उद्देश्य को नहीं छोड़ते। देखो, सुरेंद्रो बाबू वहाँ भी ऐसे आनंद हैं कि हमारे सुयोग्य सहकारी उचित वक्ता उनके विषय में ऐसी सम्मति देते हैं कि “ऐसा कारागार भी वांछनीय नहीं वरञ्च प्रार्थनीय है।" ___खैर यह तो शालिग्राम की कथा हुई अब गंगाजी का यह हाल है कि हमारे कानपूर में एक चमड़े का कारखाना खुला है। कई दिन से उसका दुर्गधिपूरित जल कभी २ गंगाजी में आ जाता है जिसके कारण गंगास्नान, पितृतर्पण और जलपान करने को भी नहीं चाहता और रोग फैलने का भी अधिक संभव है,पर न जाने हमारी म्युनिसिपल कमेटी किस नींद सो रही है ? खं० १, सं. ४ ( १५ जून, सन् १८८३ ई.) गुप्त ठग कपड़ा लत्ता चेहरा मुहरा देखो तो भले मानसों का सा। बातें सुनो तो साक्षात युधिष्ठिर जी का अवतार । "झूठ बोलना और... और...."बराबर है" यह जिनके तकिया कलाम हैं, "रामीराम पर" "धर्माधरम पर" "जनेऊ कसम" "राम धै" "परमेसुर जाने" "जो तुम्हारे ईमान में आवै" "अरै भया रपया पैसा हाथ का मैल है, घरम नहीं तो कुछ भी नहीं"-दिन भर यही बातें बात २ पर निकलेंगी। गंगाजी के दर्शन दोनों पहर करेंगे, मंदिर मे घंटों घंटा हिलावैगे, कथा में बैठे तो श्लोक श्लोक पर आंसू चले आते हैं । कोई जाने धरती के खंभ, धर्म का पुतला, प्रेम का रूप, जो हैं सो बस आप ही हैं। पर कोही २ के लिये सब सतजुग वाली बातें बिलैमान हो जाती हैं । दूकान पर आये नहीं कि "या महादेव बाबा भेज तो कोई भोला भाला आँख का अंधा गाँठ का पूरा"। अह ह ह ह बलिहारी २ बगुला भगत, बलिहारी ! ध्यान करते देख सो तो जाने कि ब्रह्म से तन्मय हो रहे हैं पर मछली निकली की गप । जानते होंगे कि कोई जानता नहीं, यह नहीं समझते "पापु अटारी चढ़ि के गोहरावत है ।" भला यार लोगों से भी कुछ छिपती है ! यार बुरा मानो चाहै भला पर कहेंगे वही जो तुम्हारे और सबके हित की हो । जब तक आचरण न सुधरेंगे तब तक यह सब भगतई और भलमंसी कौड़ी काम को नहीं है। अपने मुंह चाहो जो बने रहो जानि परो जब जइही