पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/४५७

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स्वतंत्र ] ४३३ हाय सूबे अवध के कन्हैया! तुम हमारा शासन न करते थे, तुम हमारी जाति के नये तो भी, हमारा बादशाह कलकत्ते में बैठा है, स्मरण हमारे लिए संतोषजनक था । तुम्हारा अंतःकरण हमसे ममता रखता था, इसमें कोई संदेह नहीं। पर हाय ! दुष्ट देव से इतना भी न देखा गया, मूर्ख, खुशामदी और अपने दुर्गुणों से भी पराये सद्गुण तक को तुच्छ समझने वाले चाहे जो कुछ झख मारें, पर हम भली भांति जानते हैं कि तुम्हारे दोष भी मनुष्य जाति की अपूर्ण शक्ति से अधिक कुछ न थे। तुमने अपनी प्रभुता के समय हिन्दू मुसलमान दोनों को अपनी प्यारी प्रजा समझा है। यह तुम्हारा एक गुण ऐसा है कि तुममें सचमुच के सहस्र दोष भी होते तो मस्म कर देता ! जो मूर्ख और दुष्ट लोग अपने मतवालेपन से दूसरों के पूज्य पुरुषों की निंदा और उनसे घृणा किया करते हैं उनसे तुम लाखों कोस दूर थे । सहस्रों लोगों का रक्त बहेगा, सहस्रों ललनाओं का अहिवात जाता रहेगा, इस भय से आने तई प्रसन्नतापूर्वक दूसरों के हाथ में सौंप दिया। यह गुण तुम्हारा हमारे हृदय को प्रफुल्लित करता है । गुणग्राहकता माश्रितपोषकता और दुावसुख दोनों में एकरसता आदि के कारण तुम प्रेम समाज के प्रातःस्मरणीय हो । सितंबर की २१ तारीख तुम्हारे वियोग का दिन है, अतः सहृदयो को दुखदाई होगी। कहां तक लिखें, थोक के मारे तो अधिक विषय सूझते ही नहीं। इस दशा में भी सहस्रों के पेट तुम्हारे अनुग्रह से पलते थे, हाय ! आज उनके चित्त की क्या दशा होगी !!. खं०४ सं०३ स्वतंत्र हमारे बाबू साहब ने बरसों स्कूल की खाक छानी है, बीसियों मास्टरों का दिमाग चाट डाला है, विलायत भर के ग्रंथ धरे बैठे है, पर आज तक हिस्ट्री जियोग्रफी आदि रटाने में विद्या-विभाग के अधिकारीगण जितना समय नष्ट कराते हैं उसका सतांस भी स्वास्थ्यरक्षा और सदाचार शिक्षा में लगाया जाता हो तो बतलाइए ! यही कारण है कि जितने बी० ए०, एम ए० देखने में आते हैं, उनका शरीर प्रायः ऐसा ही होता है कि आंधी आवै तो उड़ जाय । इसी कारण उनके बड़े २ खयालात या तो देश पर कुछ प्रभाव ही नहीं डालने पाते वा उलटा असर दिखाते हैं । क्योंकि तन और मन का इतना हढ़ संबंध है कि एक बेकाम हो तो दूसरा भी पूरा काम नहीं दे सकता, और यहां देह के निरोग रखने वाले नियमों पर प्रारंभ से भाज तक कभी ध्यान ही नहीं पहुंचा। फिर • "निबंध-नवनीत' से उद्धृत । २८