पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/४६२

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

४५८ [प्रयापमारावण-पापो भी चलने लगते हैं, और इसके पुरस्कार में परमात्मा उन्हें सुब सुयश का भागी प्रत्यक्ष में बना देता है, तथा परोक्ष के लिए अनंत मंगस का निप्रय उनकी मारमा को आप हो जाता है। देख कर भी जिस हिंदू की बातें न खुलें, और इतना न सूझें कि जिन दिव्य रत्नों को दूर २ के परीक्षक भी गौरव से देखते हैं उन्हें कांच बतलाना अपनी ही मनोदृष्टि का दोष दिखलाना वा अपने अग्रगन्ता की अतिमानुषी बुद्धि का बैभव बतलाना है, और जो ऐसा साहस करने में स्वतंत्र बनता है, उसके लिए विचारशील मात्र कह सकते हैं कि यह स्वतंत्रता एक प्रकार मालीखूलिया ( उन्माद ) है, जिसका लक्षण है-किसी बात वा वस्तु को कुछ का कुछ समझ लेना, वा बिन जानी बात में अपने को ज्ञाता एवं शक्ति से बाहर काम करने में समर्थ मान बैठना । ____ यह रोग बहुधा मस्तिष्क शक्ति को हीनता से उत्पन्न होता है और बहुत काल तक एक ही प्रकार के विचार में मग्न रहने से बद्धमूल हो जाता है । आश्चर्य नही कि स्वतंत्र देश के स्वतंत्राचारियों ही की बातें लड़कपन से सुनते २ और अपनी रीतिनीति का कुछ ज्ञानगौरव न होने पर दूसरों के मुख से उसकी निंदा सहते २ ऐसा भ्रम हो जाता हो कि हम स्वतंत्र हैं, तथा इस स्वतंत्रता का परिचय देने में और ठौर सुभीता न देख कर अनबोल पुस्तकों ही के सिद्धांतों पर मुंह मारना सहज समझ कर ऐसा कर उठाते हों। इससे हमारी समझ में तो और कोई स्वतंत्रता न होने पर केवल इसी रीति की स्वतंत्रता को दिमाग का बलल समझना चाहिए। फिर भला जिनके विषय में हम इतना बक गए वह बुद्धिविघ्रम के रोगी हैं वा स्वतंत्र हैं ? परतंत्रता के जो २ स्थान ऊपर गिना आए हैं उस ढंग के स्थलो पर स्वतंत्रता दिखावे तो शीघ्र ही धृता का फल मिल जाता है। इससे स्वतंत्र नहीं बनते । यदि परमेश्वर हमारा कहा माने तो हम अनुरोध करें कि देव, पितृ धर्म-प्रथादि की निगा जिस समय कोई करे उसी समय उसके मुंह में,और नहीं तो एक ऐसी फुड़िया ही उपजा दिया कोजिए जिसकी पीड़ा से दो चार दिन नीद भूख के लाले पड़े रहें, अथवा पंवो में हमारा चलता हो तो उन्हीं से निवेदन करें कि निंदक मात्र के लिये जातीय कठिन दंड ठहग दीजिए, फिर देखें बाबू साहब कैसे स्वतंत्र हैं !. खं०? सं०? • 'निबंध-नवनीत' से उद्धृत ।