पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/५३६

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

५१२ [ प्रतापनारायण-ग्रंथावली ४२प्रत्येक काम को मर्यादाबद्ध हो रखना अच्छा होता है । ४३-अभ्यास के आगे सभी कुछ सहज है। ४४-किसी की वस्तु देख के ललचना अच्छा नहीं । सत्य और श्रम के द्वारा उस का उपार्जन करणीय है। ४५-जिन लोगों को बहुत लोग पच्छा वा बुरा समझते हैं उन्हें हम को भी वैसा ही समझना चाहिए और उन का फल शीघ्र न मिले तो यह समझना ठीक नहीं है कि कभी मिले ही गा नहीं। ४६----मादक पदार्थों का व्यसन अंत में स्वास्थ्य का नाश ही करता है। ४७-घर का भेद बाहर वालों से कभी न कहना चाहिए, न आपस के झगड़े दूसरों के पास ले जाना चाहिए । ___४८-आवश्यकता और विवशता में यदि कोई अनुचित कार्य करना पड़े तो वह समय टलते ही अपने पूर्व पद्धति पर आ जाना चाहिए । उस कार्य का पक्ष लेना उचित नहीं है। ४९-अपने प्रत्येक सम्बन्धी को प्रसन्न और अपनी प्रत्येक वस्तु को सावधानी से रखना चाहिए। ५०-स्वास्थ्य और सम्भ्रम को रक्षा में सदा दत्तचित रहो ।