पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/५४६

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली सूचना हम तीन मास से ऐसे रोगग्रस्त हो रहे हैं कि जिस का वर्णन नहीं। पाठक यदि देखते तो त्राहि २ करते । नित्य के मिलने वाले मित्रों से कोई पूछे जिन्हें किसी २ दिन हमारी दशा पर रोना आता था। फिर आप जानिये अकेला मनुष्य पत्र संपादन करता कि रोग जातना भोगता । अतः हम क्षमा पात्र हैं। हमारे पत्र की भी हमारी ही सी दशा है, और हमारे पाठकों में से बहुतों को ज्ञात है कि हम कोई लखपती नहीं हैं, आजकल नौकरी भी छोड़े बैठे हैं, और यह तो सभी जानते हैं कि हिंदी पत्र कुछ कमाई के लिये नही होते, खर्च भर निकलना भी बनीमत है। विशेष हमारे 'ब्राह्मण' से खुशामद हो नहीं सकती कि कोई सहायक हो । हां अपने सहावकों का अहसान जरूर मानेंगे पर देव ( यह शब्द कहते ऐसा ही डर लगता है जैसा फारसी के देव अर्थात् राक्षस से कोई डरे ) अपनी तरफ से तो बहुतेरे एक १०१ असली भी नहीं दे सकते, आगे क्या आशा है । अतः जिन समर्थको को इस पत्र में मजा आता है, जिन्हों ने बहुधा ब्राह्मण के बचन सराहे हैं, वे कुछ न कुछ कर सके तो बेहतर है । और जिन के नीचे अभी तक रु. बाकी है वे भी यदि निरे कंगाल म हो गए हों तो इस पत्र के पाते ही जी कहा करके दे डालें, नहीं तो हम कुछ दिन के लिये असमर्थ हो जायंगे, कहाँ तक रिण वा भार उठावें । यदि हमारे ग्राहकगण ध्यान देंगे तो हम तीन मास की कसर बहुत शीघ्र निकाल डालैगे। देर तो हुई ही है और मन की बार कोई रोचक लेख भी नहीं है पर हमारी दशा पर ध्यान दे के क्षमा कोथिए । यदि पत्र की दशा सुधर गई तो देखना क्या मजे दिखाता है। समझदार को इतना बहुत है। खंड 3, स० १२ ( १५ फरवरी ह० सं० २) आप बीती वर्ष भर से बीमारियां रोड़ें पीछा ही नहीं छोड़ती। यदि एक ने कुछ मुंह मोड़ा तो दूसरी ने मा दबाया। हम यो हो बड़े बली थे, तिस पर आजकल तो ताकत के मारे कोई हड्डी नहीं है जो मांस को अपने ऊपर आने दे। यह पत्र हमने रुपया जोड़ने को न चलाया था पर तो भी उस का खर्च तो निभना ही चाहिए। लेकिन जमामार बाइक नही समझते कि संपादक लक्षाधीश नहीं है। इधर छापने वालों को घिस २ जुदा ही हैरान करती है। पहिले तो लिखत हैं-हम तुम्हारे मित्र हैं, हमारे प्रेस को