पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/५६०

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

[प्रतापनारायण-ग्रंथावली तिहूँ लोक पर पूज्य प्रधान । करिहैं तब त्रिदेव इव धान ॥ सुमिरौ तीनहु समय सुजान । हिंदी हिंदू हिंदुस्तान ॥ ६ ॥ सरवस जाइ दीजिए जान । सब कुछ सहिए बनि पाषान ॥ 4 गहि रहिय प्रेम पन ठान । हिंदी हिंदू हिंदुस्तान ॥ ७ ॥ तबहिं सुधरिहै जनम निदान । तबहिं भलो करिहैं भगवान ॥ जब रहिहै निशिदिन यह ध्यान । हिंदी हिंदू हिंदुस्तान ॥ ८ ॥ जब of तजि सब मक सकु। अरु आस पराई । नहिं करिही अपने हाथन अपनो भलाई । अपनी भाषा भेष भान भोजन भाइन कहं । जब लग जगते उत्तम यहि जानिही जिय महं ॥ तब लग उपाय कोटिन कात अगनित जनम बितायही । पै सांचो सुख संपति मुजस सपनेहु नहिं लखि पायही ॥ ९ ॥ खंड ७, सं० १२ ( १५ जुलाई, ह० सं० ७) मंठाल पाठ जय जय जय आनंद मय, अष्ट सिद्धि तार । करत भक्त मम मंदिरनि, जो बमु जाम बिधर ॥ १ ॥ अष्ट अंग बिद जोगि जन, नहिं आनहिं पनि जाम् । अष्ट कपारी हम सरिस, विमि गावहिं गुण तासु ॥ २ ॥ केवल अपनी गरन कहं, पकरि प्रेम की ओट । मांगहि जयजयकार कहि. सदा मनोरथ मोट ॥ ३ ॥ जदपि जाचना के बिना, देत सबै कछु सोय । 4 हम बैरागी नहीं, जिन के चाह न होय ॥ ४ ॥ याते मांगहि जोरि कर, धरि उर आस महान । हिंदी हिंदू हिंद कर, करहु नाथ ! कल्याण ॥ ५ ॥ सब प्रकार सुख सों रहहिं, इन के चाहन हार । जग महं चहुँदिस सुनि पर, इन को जै जै कार ॥ ६ ॥ हैं इन के सांचे हितू, श्री महाराजकुमार। रामदीन हरि विज्ञवर, धरम बोर समुदार ॥ ७ ॥ जासु कृपा लहि के भयो, मृत्युंजय यह पत्र । राखहु निज कर कंज कर, प्रभुबर ! तेहि गिर छात्र ॥ ८ ॥