पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/७

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वक्तव्य पं० प्रतापनारायण मिश्र आधुनिक हिंदी के विधायक लेखकों में हैं। हिंदी गद्य और पद्य को नया संस्कार देने में वे अपने जमाने के किसी भी निर्माता से उनोस नहीं पड़ते। कुछ बातों में वे अपना सानी नहीं रखते। वे खूब चैतन्य साहित्यकार हैं । युग-चेतमा के प्रकाशन-योग्य नए मुहावरे और नई कलम के वे धनो लेखक हैं । भारतेंदु. युग के लेखकों में उनका व्यक्तित्व अद्भुत है । वैसा ही बहुरंगी और प्रकाशवान उनका साहित्य भी है । श्री बालमुकुंद गुप्त ने ठोक ही लिखा है कि 'गद्य और पद्य लिखने में भारतेंदु जैसे तेज, तीखे और बेधड़क थे, प्रतापनारायण भी वैसे ही थे ।' हिंदी के निबंध निबंधकारों में उनका स्थान बहुत ऊंचा है। काव्य और नाटक के क्षेत्र में भी उनका कर्तृत्व अनूठ है । आरंभिक हिंदी-गद्य को नितांत अकृत्रिम, खरे और वीर्यवत्तर रूप में सामने लाने में उनके जैसा सामर्थ्य दूसरों में शायद ही मिले। भाषा के गह्य विकारों को हो शैलो-सर्वस्व समझने वाले लोग उनकी भाषा के बहुविज्ञापित भदेसपन पर ही नजर गड़ा कर अपने मानदंड ( डण्डे ) का पोलापन जाहिर करते हैं । वे अपने नकली चमक दमक वाले वाग्जाल में बहुतों को उलझा कर उन्हें प्रतापनारायणजी ही नहीं बल्कि अन्य गद्य लेखकों की भी भाषा की आंतरिक योग्यता और शक्ति के साक्षात्कार से वंचित रखते हैं । हिंदी वालों के लिए यह भारी घाटा है। जानकारों को यह प्रपंच खलता है। आलोचना अब यदि सचमुच कोई तत्त्व की बात साफ ढंग से नहीं कहती तो कड़ा समझो जाती है। भारतेंदु-युग के ऐसे जीवंत लेखक को समझने और परखने का साधन --उसका साहित्य-आंखों से ओझल हो रहा है। उनकी पुस्तकों में से कुछ अलभ्य हो गई, कई दुर्लभ हैं। दो एक जगह बेतरह बंधे 'ब्राह्मण' देवता भी जीर्ण-कलेवर हो गए हैं और पांच-सात साल में उनका छूमंतर हो जाना प्रायः निश्चित है। सन् १९१९ में पं० प्रतापनारायण के कुछ लेखों का संकलन 'निबंध-नवनीत' नाम से प्रकाशित हुआ था जो अब दुष्प्राप्य है। श्री रमाकांत त्रिपाठी ने 'प्रताप-पीयूष' नाम से उन के थोड़े से लेखों और कविताओं का एक सुसंपादित संग्रह सन् १९३३ में छपवाया। उनके कुछ निबंध 'प्रताप समीक्षा' (सं०-श्री प्रेमनारायण टंडन) में संकलित हैं पर इसमें अधिकतर 'निबंध-नवनीत' और 'प्रताप-पीयूष' की ही चीजें हैं । इधर कुछ वर्ष पूर्व श्री नारायणप्रसाद जो अरोड़ा के सद्योग से प्रतापनारायण जी की प्राप्त कविताओं का संकलन 'प्रताप-लहरी' नाम से 'प्रतापनारायण मिश्र' नाम से उनके अब तक असंगृहीत कुछ निबंध 'बाह्मण' से एकत्र किए गए। पर मिश्रणो की रचनाओं के एक