पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/९९

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कुतर्क का मुंहतोड़ उत्तर सच्चे आस्तिकों का मंतव्य है कि ईश्वर को आज्ञा बिना कुछ नहीं होता और वह जो चाहे सो करे । इस पर आजकल के मतवाले, जिनका धर्म केवल मुंह की हार जीत पर स्थित है, बहुधा सीधे सादे विश्वासियों से ऐसी २ कुतर्क कर उठते हैं, कि क्या वही चोरी जारी इत्यादि दुष्कर्म भी कराता है तथा वह अपने तई मार भी डाल सकता है ? इत्यादि । इन कुतों से दृढ़ विश्वासियों की तो कोई हानि नहीं होती, क्योंकि वे जानते हैं कि विश्वास तो केवल हमसे और जगदीश्वर से संबंध रखता है। हम अपने प्यारे परमात्मा को कुछ मानते हैं-बाप, बेटा बड़ा, छोटा, स्त्री, पुरुष, भला, बुरा, चाहे जैसा हम उसे मानेंगे। हमारे मन्तव्यानुसार वह हम से बरताव करेगा। इसमें किसी के बाप का इजारा नहीं है। बातों से हम लाख बार हारेंगे चाहे जीतेंगे, हमारा धर्म कच्चा रंग नहीं है कि तनक में उड़ जाय ! हमें किसी से विवाद की आवश्यकता-क्या है । हमका कोई नया मत नहीं चलाना। हम लावनीवाज नहीं हैं। हम तो अपने किसी के कोई हैं । पर कच्चे धमियों की इसमें बड़ी भारी हानि यह होती है कि उनके बरसों से जमे हुए विश्वास में हलचल पड़ जाती है। बिचारे बैठे बिठाये भ्रमसागर में डुभकं करने लगते हैं। किसी बकवादी के चेले, अनुगामी वा सिपाही बन के परमोत्तम मार्ग से पतित हो जाते हैं उनके लिये हमने थोड़ी सी कुतकों का मुंहतोड़ उत्तर 'शठं प्रति शाठ्य कुर्यात्' न्याय से सोचा है। वा क्या जाने किसी अगले सजन ने कहीं लिखी रखा हो, जिससे ईश्वर चाहेगा तो कुतर्की राम को यदि पीठ न दिखाना पड़ेगी तो कुछ देर जवाब सोचने के लिये आकाश पाताल तो देखना ही पड़ेगा। कुर्कि उवाच-क्यों साहब, तो उसकी आज्ञा बिना कुछ नहीं होता न ? धर्मी-हां हां, आज्ञा ही नहीं बरञ्च सहाय भी नसकी सब कर्मों में अपेक्षित है। कूतर्की-तो चोरी जारी इत्यादि में भी उसकी आज्ञा और सहाय रहती है । वाह रे तुम्हारे ईश्वर! धर्मी-उक्त कर्मो को आपही लोगों ने बुरा ठहरा लिया है अथवा इसका भी कोई प्रमाण है कि ईश्वर की दृष्टि में बुरे हैं ? कुतर्की-शायद आप ही अच्छा समझते हों,नहीं दुनिया भर तो बुरा ही कहती है। धर्मी-मैं तो अपने और अपने मित्रों के करने योग्य नहीं कह सकता। क्योंकि हमारी शांतिभंग सम्भावित है और दुनिया भर का आपने व मैंने ठेका नहीं लिया। केवल दो चार सभ्य देश, जिनसे हमसे संबंध रहता है, उनमें प्रकाश रीति से बुरे कहे जाते हैं। यद्यपि बड़े २ लोग भी प्रछन्न रूप से करते ही हैं। समझ जाइये! फिर कहिये भला सारा संसार वास्तव में बुरा मानता है ? और यदि वास्तव में बुरा मानते हों तो भी क्या ईश्वर की बुद्धि संसारियों ही की सी है ? बस उसकी प्रत्येक बात