( ४ )
करके जो ज्ञान प्राप्त करते हैं उससे भी अधिक मनोरंजक तथा उपयोगी ज्ञान प्रतापनारायण सरीखे आदमी यों ही अनेक
प्रकार के लोगों से मिलजुल कर तथा सांसारिक अनुभव को
बढ़ाते हुए प्राप्त कर लेते हैं।
उनके लेखों को एक बार पढ़ जाइए तो अपको स्पष्ट ज्ञात हो जायगा कि पण्डित प्रतापनारायण यथावत् शिक्षा न पाये होने पर भी कितने बहुज्ञ थे और उनकी दृष्टि कैसी पैनी थी। हिंदी, उर्दू, फारसी, संस्कृत, बँगला, अंग्रेज़ी आदि बहुत सी भाषाओं में उनकी खासी गति जान पड़ती है, क्योंकि न जाने कहाँ कहाँ की बातें उन्हें लिखते समय याद आ जाती हैं। सूझ तो उनकी अद्वितीय थी। इन सब के नमूने आगे अन्य स्थल पर दिये जायेंगे।
प्रतापनारायण का चरित्र तथा
उनकी जीवन-चार्य्या
सनातन काल से जनसाधारण की यह धारणा चली आई
है कि साहित्य-सेवी एक विचित्र प्रकार के जीव होते हैं,
क्योंकि सांसारिक धंधों में उनकी विशेष रुचि नहीं होती और
न जीवन की समस्याओं को समझने के लिए उनमें योग्यता
ही होती है। इसके सिवाय उनका जीवन बड़ा शुष्क अथवा
नीरस होता है और उनकी बातचीत, क्या व्यवहार सभी से
किताबों की गंध निकला करती है। पर, इसके विपरीत पं०