(११६)
मानने की योग्यता और शक्ति हमको तुमको क्या किसी को
भी तीन लोक और तीन काल में नहीं है। पर इसमें भी सन्देह
न करना कि जो कोई चुपचाप आंखें मींच के मान लेता है वह
परमानन्द भागी हो जाता है।
हिहि ! ऐसी बातें मानने तो कौन आता है, पर सुनकर परमानन्द तो नहीं, हां, मसखरेपन का कुछ मज़ा ज़रूर पा जाता है !
भला हमारी बातों में तुम्हारे मुंह से हिहि तो निकली ! इस तोबड़ा से लटके हुए मुंह के टांकों के समान दो तीन दांत तो निकले। और नहीं तो, मसखरेपन ही का सही, मजा तो आया। देखो, आंखें मट्टी के तेल की रोशनी और कुल्हिया के ऐनक की चमक से चौंधिया न गई हों तो देखो! छत्तिसौ जात, बरंच अजात के जूठे गिलास की मदिरा तथा भच्छ अभच्छ की गंध से अकिल भाग न गई हो तो समझो। हमारी बातें सुनने में इतना फल पाया है तो मानने में न जाने क्या प्राप्त हो जायगा । इसी से कहते हैं, भैया मान जाव, राजा मान जाव, मुन्ना मान जावो । आज मन मारके बैठे रहने का दिन नहीं है । पुरखों के प्राचीन सुख-सम्पति को स्मरण करने का दिन है। इससे हंसो, बोलो, गाओ बजाओ, त्योहार मनाओ, और सब से कहते फिरो-होली है।
हो तो ली ही है । नहीं तो अब रही क्या गया है।
खैर, जो कुछ रह गया है उसी के रखने का यत्न करो,