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अप्रतर्य एवं अचिन्त्य हैं । तौ भी उनके भक्त जन अपनी रुचि के अनुसार उनका रूप, गुण, स्वभाव कल्पित कर लेते हैं।
उनकी सभी बातें सत्य हैं, अतः उनके विषय में जो कुछ कहा
जाय सब सत्य है । मनुष्य की भांति वे नाड़ी आदि बंधन से
बद्ध नहीं हैं। इससे हम उनको निराकार कह सकते हैं और
प्रेम दृष्टि से अपने हृदय मन्दिर में उनका दर्शन करके साकार
भी कह सकते हैं। यथा-तथ्य वर्णन उनका कोई नहीं कर
सकता। तौ भी जितना जो कुछ अभी तक कहा गया है और
आगे कहा जावेगा सब शास्त्रार्थ के आगे निरी बकबक है और
विश्वास के आगे मनः शांति कारक सत्य है !!! महात्मा कबीर
ने इस विषय में कहा है वह निहायत सच है कि जैसे कई अंधों
के आगे हाथीं आवै और कोई उसका नाम बतादे, तो सब उसे
टटोलेंगे। यह तो संभव ही नहीं है कि मनुष्य के बालक की
भांति उसे गोद में ले के सब कोई अवयव का ठीक २ बोध
कर ले । केवल एक अँग टटोल सकते हैं और दाँत टटोलने
वाला हाथी को खूटी के समान, कान छूने वाला सूप के समान,
पांव स्पर्श करने वाला खंभे के समान कहेगा, यद्यपि हाथी न
खूटे के समान है न खंभे के। पर कहने वालों की बात झूठी
भी नहीं है। उसने भली भांति निश्चय किया है और वास्तव में
हाथी का एक एक अंग वैसा ही है जैसा वे कहते हैं। ठीक
यही हाल ईश्वर के विषय में हमारी बुद्धि का है । हम पूरा पूरा
वर्णन वा पूरा साक्षात करलें तो वह अनंत कैसे और यदि निरा