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होगा ? बुद्धिमानों की आज्ञा है कि जिसके साथ मित्रता
करनी हो उसका पहिले यह पता लगा लो कि वह अपने
पहिले मित्रों के साथ कैसा बर्ताव रखता था। रहे अनुदार
स्वभाव वाले गौरांग, वह विद्या, बुद्धि, सौजन्य आदि पर पीछे
दृष्टि करते होंगे, पहिले काला रंग देख कर और नेटिव नाम ही
सुनकर घृणापात्र समझ लेते हैं। हां, अपना रुपया और
समय नष्ट करके मानापमान का विचार छोड़के साधारणों
की स्तुति-प्रार्थनादि करते रहैं तो ज़बानी खातिर वा मन के
धन की कमी नहीं है,............................
फिर उसे पाके कोई सच्चा स्वतंत्र क्या होगा ?
इसके सिवा किसी से ऋण लें तो चुकाने में स्वतंत्रता नहीं, कोई राज-नियम के विरुद्ध काम कर बैठें तो दंड-प्राप्ति में स्वतंत्र नहीं, नेचर का विरोध करें तो दुःख सहने में स्वतंत्र नहीं, सामर्थ्य का तनिक भी उल्लंघन करने पर किसी काम में स्वतंत्र नहीं, कोई प्रबल मनुष्य, पशु, वा रोग आ घेरे तो जान बचाने में स्वतंत्र नहीं, मरने जीने में स्वतंत्र नहीं, कहां तक कहिए, अपने सिर के एक बाल को इच्छानुसार उजला, काला करने में स्वतंत्र नहीं, जिधर देखो परतंत्रता ही दृष्टि पड़ती है। पर आप अपने को स्वतंत्र ही नहीं, बरच स्व- तंत्रता का तत्वज्ञ और प्रचारकर्ता माने बैठे हैं ! क्या कोई बतला सकता है कि यह माया-गुलाम साहब किस बात में स्वतंत्र हैं ?