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पृष्ठ:प्रताप पीयूष.djvu/१८२

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स्वामी दयानन्द की मृत्यु पर ।
करुणानिधि कहवाय हाय हरि आज कहा यह कीन्हों।
देशउधार जतन तत्पर वर पुरुषरतन हरि लीन्हों।।
जो ऐसेहि बोझ लगत हो काल-चक्र तव हाथे ।
कस न गिराय दियो काहू भारत-कलंक के माथे॥
जिन निजसरबसु केवल हम हित तजत बिलम्ब न लाई।
तिनसों हाय हमैं बिछुरावत तुम कहँ दया न आई ।।
परै अचेत मोह-निद्रा में जे नित सबहिं जगावैं।
कछु कछु आँख खुलै पर उनको हाय कहां हम पावै ।।
भरत भूमि अब कहा करैगी ? इन धूतन की आशा।
जिन निज पापी पेट हेत सब आरज गौरव नाशा ।।
सुनियत शत शत बरस जियहिं बहु मानुष सब गुन हीना।
स्वामी दयानन्द सरस्वति की तो वैसहु बहुत रहीना ॥
यूरुप अमरीका लगि हा ! हा! को अब नाम करैगो ।
श्रुति कलङ्क गो दुख द्विज दुर्गुन को अब हा न हरैगो॥
गारी खाय अनादर सहि के विद्या धर्म प्रचारै ।
ऐसो कोउ न दिखाय हाय स्वामी तौ स्वर्ग सिधारै ॥
उनइस सै चालिस सम्बत की बैरिन भई दिवारी ।
दीनबन्धु उलटी कीन्हीं तुम हाय दियो दुख भारी ।।
कहँ लगि कोउ आंसुन को रोकै कहँ लगि मनु समझावै ।