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पृष्ठ:प्रताप पीयूष.djvu/२०४

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श्री हरिश्चन्द्र उवाच।
निज भाषा निज धर्म निज गौरव को सब कोय।
दिन दूनी बढ़ती करैं जन्म सुफल तब होय॥२३॥
सम्पादन समूह उवाच।
कलह जवन देशन मचै सुधरैं हिन्दू लोय।
नित हमार ग्राहक बढ़ैं जन्म सुफल तब होय॥२४॥
ब्राह्मण उवाच।
भारत हित भगवान हित सब जग के सुख खोय।
प्रिय हिन्दू एका करैं जन्म सुफल तब होय॥२॥
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