पृष्ठ:प्रताप पीयूष.djvu/२०३

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वकील उवाच।
फूट बढ़ै सब घरन में हारे जीतै कोय।
खुली अदालत नित रहे जन्म सुफल तब होय॥१६॥
ज़मींदार उवाच।
बरसे बिन बरसे कृषक जिमैं मरै चहु रोय।
पोत बढे़ काहू यतन जन्म सुफल तब होय॥१७॥
पुलिस उवाच।
झूठी सांची कैसिहू वारिदात में कोय।
आय भलो मानुष फंसैं जन्म सुफल तब होय॥१८॥
वैद्यराज उवाच।
कहुं मारी कहुं जीर्ण ज्वर सन्निपात महं कोय।
परै धनिक नित ही रहै जन्म सुफल तब होय॥१९॥
भंडसारि उवाच।
इन्द्र देव किरपा करैं बूंद न बरसै तोय।
पांच सेर गेहूं बिकै जन्म सुफल तब होय॥२०॥
आलसी उवाच।
सोवत सोवत एक दिन जाहिं भली बिधि सोय।
हाथ हिलावन ना परै जन्म सुफल तब होय॥२१॥
बकुला भक्त उवाच।
माला कर महँ देखिकै आय फंसैं सब कोय।
खुलैं न हमरे गुप्त ढंग जन्म सुफल तब होय॥२२॥