पृष्ठ:प्रताप पीयूष.djvu/२१३

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(२०२)

बुढ़ापा-वर्णन।
हाय बुढ़ापा तोरे मारे
अब तो हम नकन्याय गयन।
करत धरत कछु बनतै नाहीं
कहाँ जान औ कैस करन।
छिन भरि चटक छिनै मां मद्धिम
जस बुझात खन होय दिया।
तैसै निखवख देखि परत हैं
हमरी अक्किल के लच्छन॥१॥
अस कछु उतरि जाति है जीते
बाजी बेरियां बाजी बात।
कैस्यो सुधि ही नाही आवति
मूंडुइ काहे न दै मारन।
कहा चहौ कुछु निकरत कुछ है
जीभ रांड़ का है यह हालु।
कोऊ याकौ बात न समुझै
चाहे बीसन दांय कहन॥२॥
दाढ़ी नाक याक मां मिलिगै
बिन दांतन मुंह अस पोपलान।
दढ़िही पर बहि बहि आवति है
कबौं तमाखू जो फांकन।