पृष्ठ:प्रताप पीयूष.djvu/२३०

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(२१९)

भाषा भोजन भेष-विधान । तजै न अपनो सोइ मतिमान ।
बस समझौ सौभाग्य प्रमान । हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ॥३॥
धनि है वह धन धनि वे प्रान । जो इन हेतु होंय क़ुरबान ।
यही तीन सुख सुगति निधान । हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ॥४॥
तिहूं लोक पर पूज्य प्रधान । करिहैं तव त्रिदेव इव त्रान ।
सुमिरहु तीनहु समय सुजान । हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ॥५॥
सरबसु जाय दीजिये जान । सब कछु सहिये बनि पाखान ।
पै गहि रहिय प्रेम प्रन ठान । हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ॥६॥
तबहिं सुधरिहै जनम निदान । तबहिं भलो करिहैं भगवान ।
जब रहिहै निसदिन यह ध्यान । हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ॥७॥
जिन्हें नहीं निजता को ज्ञान । वे जन जीवत मृतक समान ।
याते गहु यह मंत्र महान । हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ।।८।।
जब लगि तजि सब शंक सकुच अरु आस पराई ।
नहि करिहौ निज हाथन आपनी भलाई ॥
अपनी भाषा भेष भाव भोजन भाइन कहँ ।
जब लगि जग ते उत्तम नहिं आनि हौ तुम जिय महँ ।।
तब लग उपाय कोटिन करत अगनित जनम बितायहौ।

पै सांचो सुख सम्पति सुजस सपनेहु नहिं लखि पायहौ ।।९।।