सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:प्रताप पीयूष.djvu/५९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।

( ४९ )


अब्ब (पिता बोलने में अब्बा) और यूरोपीय भाषाओं के पापा (पिता) पोप (धर्म-पिता) आदि भी इसी आप से निकले हैं। हाँ, इसके समझने समझाने में भी जी ऊबे तो अंग-रेज़ी के एबाट ( Abot महंत ) तो इसके हई हैं, क्योंकि उस बोली में हृस्व और दीर्घ दोनों प्रकार का स्थानापन्न A है, और "पकार" को "बकार" से बदल लेना कई भाषाओं की चाल है। रही टी (t) सो वह तो "तकार" हई है। फिर क्या न मान लीजिएगा कि एबाट साहब हमारे 'आप' बरंच शुद्ध प्राप्त से बने हैं।

हमारे प्रान्त में बहुत से उच्च वंश के बालक भी अपने पिता को अप्पा कहते हैं, उसे कोई २ लोग समझते हैं कि मुसलमानों के सहवास का फल है, पर यह उनकी समझ ठीक नहीं है, मुसलमान भाइयों के लड़के कहते हैं अब्बा, और हिन्दू-सन्तान के पक्ष में 'बकार' का उच्चारण तनिक भी कठिन नहीं होता, यह अंगरेज़ों की तकार और फ़ारस वालों की टकार नहीं है कि मुहीं से न निकले, और सदा मोती का मोटी अर्थात् स्थूलांगा स्त्री और खस की टट्टी का तत्ती अर्थात् गरम ही हो जाय। फिर अब्बा को अप्पा कहना किस नियम से होगा! हां, आप्त से आप और अप्पा तथा आपा की सृष्टि हुई है, उसी को अरबवालों ने अब्बा में रूपांतरित कर लिया होगा, क्योंकि उनकी वर्णमाला में "पकार” (पे) नहीं होती। सौ बिस्वा बप्पा, बाप, बापू, बब्बा, बाबा, बाबू आदि भी इसी से निकले