पृष्ठ:प्रताप पीयूष.djvu/९९

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पुष्टि के लिए अमृत के समान हैं, पर ज्वर-ग्रस्त व्यक्ति के लिये महादुखदायक हैं। संखिया प्रत्यक्ष विष है, पर अनेक रोगों के लिए अति उपयोगी है। इस विचार से जब देखिये तो जान जाइयेगा कि साधारण लोगों के लिये स्त्री मानो आधा शरीर है। यावत् सुख दुःखादि की संगिनी है, संसार-पथ में एकमात्र सहायकारिणी है।

पर जो लोग सचमुच परोपकारी हैं, स्वतंत्र हैं, महोदार- चरित हैं, असामान्य हैं, जगद्वन्धु, उन्नतिशील हैं उनके हक में मायाजाल की मूर्ति, कठिन परतंत्रता का कारण और घोर का मूल स्त्री ही है । आपने शायद देखा हो कि धोबियों का एक लौह यंत्र होता है जिसके भीतर आग भरी रहती है । जब कपड़ों को धोके कलप कर चुकते हैं तब उसी से दबाते हैं। इस यंत्र का नाम भी इस्तरी है। यह क्यों ? इसी से कि धोये कपड़े के समान जिनका चित्त जगत-चिन्तारूपी मल से शुद्ध है उनके दबाने के लिये उनकी आर्द्रता ( तरी व सहज सरलता ) दूर करने के लिये लोहे के सरिस कठोर अग्निपूर्ण पात्र सदृश उष्ण- परमेश्वर की माया अर्थात् दुनियां भर का बखेड़ा फैलानेवाली शक्ति स्त्री कहलाती है।

अरबी में नार कहते हैं अग्नि को, विशेषतः नरक की अग्नि को और तत्संबन्धी शब्द है नारी । जैसे हिन्दू से हिन्दु- रतान बनता है, वैसे ही नार से नारी होता है, जिसका भावार्थ यह है कि महादुःख रूपी नर्क का रूप, गृहस्थी की सारी चिन्ता