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प्रतिज्ञा

कल्पना तुम कर सकती हो? ईश्वर तुम्हें दुःख के इस अपार सागर में डूबने नहीं देना चाहते। वह तुम्हें उबारना चाहते हैं, तुम्हें जीवन के आनन्द में मग्न कर देना चाहते हैं। यदि उनकी प्रेरणा न होती, तो मुझ जैसे दुर्बल मनुष्य के हृदय में प्रेम का उदय क्यों होता; जिसने किसी स्त्री की ओर कभी आँख उठाकर नहीं देखा, वह आज तुमसे प्रेम की भिक्षा क्यों माँगता होता? मुझे तो यह दैव की स्पष्ट प्रेरणा मालूम हो रही है।

पूर्णा अब तक द्वार से चिपकी खड़ी थी? अब द्वार से हटकर वह फ़र्श पर बैठ गई। कमलाप्रसाद पर उसे पहले जो सन्देह हुआ था, वह अब मिटता जाता था। वह तन्मय होकर उनकी बातें सुन रही थी।

कमलाप्रसाद उसे फ़र्श पर बैठते देखकर उठा; और उसका हाथ पकड़कर कुर्सी पर बिठाने की चेष्टा करते हुए बोला---नहीं-नहीं पूर्णा, यह नहीं हो सकता। फिर मैं भी ज़मीन पर बैठूँगा! आखिर इस कुर्सी पर बैठने में तुम्हें क्या आपत्ति है?

पूर्णा ने अपना हाथ नहीं छुड़ाया, कमला से उसे झिझक भी नहीं हुई। यह कहती हुई कि बाबूजी आप बड़ी ज़िद्द करते हैं, कोई मुझे यहाँ इस तरह बैठे देख ले, तो क्या हो--वह कुर्सी पर बैठ गई।

कमला का चेहरा खिल उठा, बोला--अगर कोई कुछ कहे, तो उसकी मूर्खता है। सुमित्रा को यहाँ बैठे देखकर कोई कुछ न कहेगा; तुम्हें बैठे देखकर उसके हाथ श्राप ही आप छाती पर पहुँच जायँगे। यह आदमी के रचे हुए स्वाँग हैं और मैं इन्हें कुछ नहीं समझता। जहाँ देखो ढकोसला, जहाँ देखो पाखण्ड। हमारा सारा जीवन

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