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प्रतिज्ञा

इधर उसकी दावत नहीं की, इसीसे चिढ़ा हुआ है। भला बहू, अमृतराय की बात?

दाननाथ मोटे चाहे न हो गये हो, कुछ हरे अवश्य थे। चेहरे पर कुछ सुर्खी थी। देह भी कुछ चिकनी हो गई थी। मगर यह कहने की बात थी। माताओं को तो अपने लड़के सदैव ही दुबले मालूम होते हैं; लेकिन दाननाथ भी इस विषय में कुछ वहमी जीव थे। उन्हें हमेशा किसी न किसी बीमारी की शिकायत बनी रहती थी। कभी खाना नहीं हज़्म हुआ, खट्टी डकारें आ रही हैं, कभी सिर में चक्कर आ रहा है, कभी पैर का तलवा जल रहा है। इस तरफ़ ये शिकायतें बढ़ गई थीं। कहीं बाहर जाते, तो उन्हें कोई शिकायत न होती; क्योंकि कोई सुननेवाला न होता। पहले अकेले मा को सुनाते थे। अब एक और सुननेवाला मिल गया था। इस दशा में यदि कोई उन्हें मोटा कहे तो यह उसका अन्याय था। प्रेमा को भी उनकी ख़ातिर करनी चाहिए। इस वक्त दाननाथ को खुश करने का उसे अच्छा अवसर मिले हुए बोली---उनकी आँखों में सनीचर है। दीदी बेचारी ज़रा मोटी थदेन उन्हें ताना दिया करते। घी मत खाओ, दूध मत पीयो। परहेज़ करा-कर, बेचारी को मार डाला। मैं वहाँ होती तो लाला की खबर लेती।

माता---अच्छी देह है उसकी।

दाननाथ---अच्छी नहीं पत्थर। बलगम भरा हुआ है। महीने भर कसरत छोड़ दें, तो उठना-बैठना दूभर हो जाय।

प्रेमा---मोटा आदमी तो मुझे नहीं अच्छा लगता। देह सुडौल और भरी हुई हो। मोटी थल-थल देह किस काम की?

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