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प्रतिज्ञा

दान॰---प्रमाण मिल जायगा तब तो मानोगे?

अमृत॰---और तो घर में सब कुशल है न? अम्माँ जी से मेरा प्रणाम कह देना।

दाननाथ---अजी बैठो, इतनी जल्दी क्या है? भोजन करके जाना।

अमृत॰---कई जगह जाना है। अनाथालय के लिए चन्दे की अपील करनी है। ज़रा दस-पाँच आदमियों से मिल तो लूँ। भले आदमी, विरोध ही करना था, तो अनाथालय बन जाने के बाद करते। तुमने रास्ते में काटे बिखेर दिये।

प्रेमा अभी पान ही बना रही थी; और अमृतराय चल दिये। दाननाथ ने आकर कहा---अब तक तुम्हारे पान ही नहीं लगे। वह चल दिये। आज मान गये।

प्रेमा---वह भी सुनने गये थे?

दान---हाँ, पीछे खड़े थे। सामने होते तो आज उनकी दुर्गति हो जाती। अनाथालय के लिए चन्दे की अपील करनेवाले हैं। मगर देख लेना, कौड़ी न मिलेगी। हवा बदल गई; अब दूसरे किसी शहर से चाहे चन्दा वसूल कर लावें, यहाँ तो एक पाई न मिलेगी।

प्रेमा---यह तुम कैसे कह सकते हो। पुराने पण्डित चाहे सुधारों का विरोध करें; लेकिन शिक्षित समाज तो नहीं कर सकता।

दान॰---मैं शर्त बद सकता हूँ, अगर उन्हें पाँच हज़ार भी मिल जायँ।

प्रेमा---अच्छा, उन्हें एक कौड़ी भी न मिलेगी। झगड़ा काहे का? अब रुपए लाओ, कल पूजा कर आऊँ। भाभी और पूर्णा दोनों को

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