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प्रतिज्ञा

खोली और नाक सिकोड़कर कराहते हुए बोला---आइए भाई साहब, बैठिये! क्या आपको अब ख़बर हुई या आने को फुरसत ही न मिली? बुरे वक्त में कौन किसका होता है?

दाननाथ ने खेद प्रकट करते हुए कहा---यह बात नहीं है भाई साहब, मुझे तो अभी-अभी मालूम हुआ। सुनते ही दौड़ा आ रहा हूँ। यह बात क्या है?

कमला ने कराहकर कहा---भाग्य की बात है भाई साहब, और क्या कहूँ? इस स्त्री से ऐसी आशा न थी। जब दाने-दाने को मुहताज थी, तब अपने घर लाया। बराबर अपनी बहन समझता रहा, जो और लोग खाते थे, वही वह भी खाती थी; जो और लोग पहनते थे, वही वह भी पहनती थी; मगर वह भी शत्रुओं से मिली हुई थी। कई दिन से कह रही थी कि ज़रा मुझे अपने बग़ीचे की सैर करा दो। आज जो उसे लेकर गया तो क्या देखता हूँ कि दो मुस्टण्डे बँगले के बरामदे में खड़े हैं। मुझे देखते ही दोनो टूट पड़े। अकेला मैं क्या करता। वह पिशाचिनी भी उन दोनो के साथ मिल गई और मुझ पर डण्डों का प्रहार करने लगी। ऐसी मार पड़ी है भाई साहब कि बस, कुछ न पूछिये। वहाँ न कोई आदमी न आदमज़ाद; किसे पुकारता! जब मैं बेहोश होकर गिर पड़ा, तो तीनो वहाँ से खिसक गये।

दाननाथ ने एक क्षण तक विचार में डूबे रहने के बाद पूछा---बाबू अमृतराय का स्वभाव तो ऐसा नहीं है। हाँ, सम्भव है शोहदों की शरारत हो।

'भाई साहब, आदमी के भीतर क्या है इसे ब्रह्मा भी नहीं जान

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