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प्रतिज्ञा

को शान्त करने का यह मार्ग भी उनके लिए बन्द हो गया!

संध्या का समय था। दाननाथ बैठे कमलाप्रसाद की राह देख रहे थे। आज वह अब तक क्यों नहीं आये। आने का वादा कर गये थे, फिर आये क्यों नहीं? यह सोचकर उन्होंने कपड़े पहने और कमलाप्रसाद के घर जाने को तैयार हुए कि एक मित्र ने आकर आज की दुर्घटना की ख़बर सुनाई। दाननाथ को विश्वास न हुआ। बोले---आपने यह गप सुनी कहाँ?

'सारे शहर में चर्चा हो रही है, आप कहते हैं, सुनी कहाँ?'

'किसी ने यों ही अफ़वाह उड़ाई होगी। कम से कम मैं कमलाप्रसाद को ऐसा आदमी नहीं समझता।'

'इसकी वजह यही है कि आप आदमियों को पहचान नहीं सकते। मुझसे खुद उन डॉक्टर साहब ने कहा, जो कमलाप्रसाद की मरहम-पट्टी करने गये थे। उन्हें कमलाप्रसाद से कोई अदावत नहीं है।"

'डॉक्टर साहब ने क्या कहा?'

'उन्होंने साफ़ कहा कि कमलाप्रसाद के मुँह और छाती में सख्त चोट आई है और एक दाँत टूट गया है।'

दाननाथ ने मुस्कराकर कहा---जिसके मुँह और छाती में चोट आये और एक दाँत भी टूट जाय, वह अवश्य ही लम्पट है?

दाननाथ को उस वक्त तक विश्वास न आया, जब तक कि उन्होंने कमलाप्रसाद के घर जाकर तहक़ीक़ात न कर ली। कमला-प्रसाद मुँह में पट्टी बाँधे आँखें बन्द किये पड़ा था। ऐसा मालूम होता था, मानो गोली लग गई है। दाननाथ की आवाज़ सुनी तो आँखे

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