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प्रतिज्ञा

आदमियों का होगा। तुम तो उनके बचपन के मित्र हो, तुम्ही बतलाओ मैं झूठ कहता हूँ या सच?

दाननाथ ने देखा कि अब स्पष्ट कहने के सिवाय और कोई मार्ग नहीं है, चाहे कमलाप्रसाद नाराज़ ही क्यों हो जायँ। सिर नीचा करके एक अप्रिय सत्य, एक कठोर कर्तव्य का पालन करने के भाव से बोले---आप बिलकुल सत्य कहते हैं। उनमें यही तो एक शक्ति है, जो उनके कट्टर शत्रुओं को भी खुल्लमखुल्ला उनके सामने नहीं आने देती।

बदरीप्रसाद ने कमला की ओर हाथ उठाकर कहा---मारो इसके मुँह में थप्पड़; अब भी शर्म आई कि नहीं? अभी हुआ ही क्या है? अभी तो केवल एक दाँत टूटा है और सिर में ज़रा चोट आई है; लेकिन असली मार तो अब पड़ेगी, जब सारे शहर में लोग थूकेंगे और घर से निकलना मुश्किल हो जायगा। पापी मुझे भी अपने साथ ले डूबा। पुरुषाओं की गाढ़ी कमाई आन-की-आन में उड़ा दी। कुल-मर्यादा युगों में बनती है, और क्षण में बिगड़ जाती है। यह कोई मामूली बात नहीं है। मुझे तो अब यही चिन्ता है कि मैं कौन मुँह लेकर बाहर निकलूँगा। सपूत ने कहीं मुँह दिखाने की जगह नहीं रक्खी।

यह कहते हुए लाला बदरीप्रसाद बाहर चले गये। दाननाथ भी उन्हीं के साथ बाहर निकल गये। कमलाप्रसाद आँखें बन्द किए चुपचाप सुनता रहा। उसे भी कुल-मर्यादा अपने पिता ही की भाँति प्यारी थी। बेहयाई का जामा अभी तक उसने न पहना था। प्रेम के

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