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प्रतिज्ञा

दिनों में आप ही कलई खुल जायगी। आप जैसे सरल जीव संसार में न होते तो ऐसे धूर्तो की थैलियाँ कौन भरता?

देवकी--बस चुप भी रहो। ऐसी बातें मुँह से निकालते तुम्हें शर्म नहीं आती! कहीं प्रेमा के सामने ऐसी बे-सिर-पैर की बातें न करने लगना। याद है, तुमने एक बार अमृतराय को झूठा कहा था तो उसने तीन दिन तक खाना नहीं खाया था।

कमला--यहाँ इन बातों को नहीं डरते। लगी-लपटी बातें करना भाता ही नहीं। कहूँगा सत्य ही, चाहे किसी को अच्छा लगे या बुरा। वह हमारा अपमान करते हैं, तो हम उनकी पूजा न करेंगे। आखिर वह हमारे कौन होते हैं, जो हम उनकी करतूतों पर परदा डालें! मैं तो उन्हें इतना बदनाम करूँगा कि शहर में किसी को मुँह न दिखा सकेंगे।

यह कहता हुआ कमला चला गया। उसी समय प्रेमा ने कमरे में क़दम रखा। उसकी पलकें भीगी हुई थीं, मानो अभी रोती रही हो। उसका कोमल गात ऐसा कृश हो गया था, मानो किसी हास्य की प्रतिध्वनि हो, मुख किसी वियोगिनी की पूर्वस्मृति की भाँति मलिन और उदास था। उसने आते ही कहा--दादाजी, आप ज़रा बाबू दाननाथ को बुलाकर समझा दें, वह क्यों जीजाजी पर झूठा आक्षेप करते फिरते हैं।

बदरीप्रसाद ने विस्मित होकर कहा--दाननाथ! वह भला क्यों अमृतराय पर आक्षेप करने लगा। उसमें जैसी मैत्री है, वैसी तो मैंने और कहीं देखी नही।

प्रेमा--विश्वास तो मुझे भी नहीं आता; पर भैयाजी ही कह रहे

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