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पृष्ठ:प्रबन्ध पुष्पाञ्जलि.djvu/१०१

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यमलोक का जीवन

सब में नया उत्साह और नया जीवन सा आगया। जितने मेघ थे सबने इन्द्रधनुष की शोभा छीनी; नाना प्रकार के मनो-मुग्ध कारी रङ्गों से वे भर गये।

अब बे-पहिये की छोटो छोटी गाड़ियों को साथ लेकर बाहर निकलने का मौसम आया। सब तैयारियाँ शीघ्र ही हुईं। कुत्ते, छोलदारियाँ, खाने पीने का सामान, कपड़े-लते और सोने के लिए थैलियाँ तैयार हुई। हम लोग सफर के लिए निकल पड़े। जहाँ तक मुमकिन था हम ने कम असवाब साथ लिया। इस सफर में हमने एक बार भी कपड़े नहीं उतारे। हाँ, मोजे अलबत्ते हर रोज निकालने पड़ते थे; क्योंकि न निकालने, से पैर चिपक जाने का डर था। जब हम चले, हमारे सोने के थलों का वजन ७ सेर था; परन्तु जब हम लौटे तब वह १५ सेर हो गया था। बर्फ ने उनके वजन को दूना कर दिया था। जब दो आदमी कोशिश करके खोलले थे तब रात को सोने के वक्त ये थले खुलते थे। वे इतने टंडे हो जाते थे कि उनमें और बर्फ में कोई अन्तर न रहता था। उसी के भीतर हम लोग किसी प्रकार बड़े कष्ट से रात पिताते थे। सुबह के वक्त हमारे पैर सुन्न हो जाते थे; बड़ी बड़ी मुश्किलों से वे मोजों और बूटों के भीतर जाते थे।

ऐसी मुसीबतें झेलते हुए हम लोग ३०० मील तक गये। यहाँ तक जाने में हमको ९४ दिन लगे। किसी