सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:प्रबन्ध पुष्पाञ्जलि.djvu/१२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
११५
उत्तरी ध्रुव की यात्रा

यह पीरी साहब की संक्षिप्त चिट्ठी है। आप को आशा थी कि आप उत्तरी ध्रुव तक जरूर पहुँच जायँगे। पर नहीं पहुँच सके। बर्फ के तूफानों ने उन्हें ८७ अक्षांश से आगे नहीं बढ़ने दिया। तिस पर भी वे इतनी दूर तक गये जितनी दूर तक आज तक कोई नहीं गया था। पीरी साहब अमेरिका के रहने वाले हैं। अतएव उत्तरी ध्रुव की सैर करने वालों में, दूरो के हिसाब से, इस समय अमेरिका का नम्बर सब से ऊँचा है। पीरी साहब का इरादा था कि सबाइन अन्तरीप से ३५० मील उत्तर वे अपना खेमा रक्खेगे। वहाँ से उत्तरी ध्रुव ५०० मील है। राह में बर्फ के मैदान का विकट बियाबान है। इसे कोई डेढ़ महीने में पार कर जाने की उन्हें उम्मेद थी। परन्तु तूफानों की प्रचण्डता ने उनकी आशा नहीं पूरी होने दी।

१८७६ ईसवी में नेयर नाम के जो साहब उत्तरी ध्रुव देखने के इरादे से ८३ अक्षांश तक गये थे, उन्होंने लौट कर बतलाया था। कि ग्रांटलैंढ नामक भूभाग के उत्तर, ३० मील की लम्बाई-चौड़ाई में, समुद्र बिलकुल बर्फ से जमा हुआ है। आपने राय दी थी कि यह बर्फ ५० फुट तक गहरा था। तब से लोगों ने यह अनुमान किया था कि इस तरह का समुद्र बहुत करके ध्रुव के पास तक गया होगा ओर वह बहुत गहरा न होगा। उस पर बर्फ की बहुत मोटी तह ठेठ नीचे तक गई होगी। लोगों