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प्रबन्ध-पुष्पाञ्जलि

ने समझा था कि यह बर्फ हजारों वर्ष का पुराना होगा और पत्थर की तरह अपनी जगह पर जम गया होगा। अतएव इन चटानों पर "स्लेज" गाड़ियाँ आसानी से चल सकेगी। परन्तु कमान्डर पीरी ने इस अनुमान को गलत साबित कर दिया। पीरी ने यथा सम्भव "स्लेज" गाड़ियों से भी काम लिया और जहाज से भी। यदि बर्फ समुद्र के तल तक पत्थर की तरह जमा होता तो वह तूफानों से न टूटता और पीरी की इच्छा के विरुद्ध उनके जहाज को ग्रीनलैंड की तरफ, दक्षिण पूर्व की ओर, न बहा ले जाता। पीरी ने समुद्र में बर्फ जना जरूर पाया; पर वह पुराना न था। इसी से तूफान के वेग से वह टूट गया, पानी के ऊपर बहने लगा, और अपने साथ "रूजवेल्ट" को भी ग्रीनलैंड की तरफ बहा ले गया। अतएव "स्लेज" गाड़ियों पर सवार हो कर ध्रुव तक पहुंँचने की आशा व्यर्थ है।

अनेक विघ्न बाधाओं को टालकर, ओर “स्लेज" गाड़ियों पर दूर तक जाने में असमर्थ हो कर भी, पीरी साहब ८७ अक्षांश से भी कुछ दूर आगे बढ़ सके, यही ग़नीमत समझना चाहिए। आप को यात्रा का सविस्तार वृतान्त प्रकाशित होने पर कितनी ही अद्भुत अद्भुत बातों के मालूम होने की आशा है।

[फरवरी १९०७