६३ ईसवी में अकस्मात् भूडोल आया और विस्यूवियस के पेट में फिर, सैकड़ों वर्ष के बाद, गड़बड़ शुरू हुई। १६ वर्ष तक भूडोल आते रहे और जिस प्रान्त में यह पर्वत था उसके निवासियों के कलेजे को कँपाते रहे। अनेक मकान गिर गये; मन्दिरों के अनेक शिखर टूट पड़े; ऊँचे ऊँचे महल पृथ्वी पर उलटे लेट रहे। आगे आने वाले तूफ़ान की १२ वर्ष-व्यापी यह एक छोटी सी सूचना थी। मनुष्य संहारक प्रलय का यह आदि रूप था। भूडोल के धक्के धीरे धीरे अधिक उग्र होते गये। अन्त में २४ अगस्त ७९ ईसवी को विस्यूवियस का भीषण मुँह, महा भयङ्कर अट्टहास करके, खुल गया। क्षुब्ध हुये समुद्र में जिस प्रकार एक छोटी सी डोंगी हिलती है, एक निमेष में कई हाथ ऊपर उठ कर फिर नीचे आ जाती है––स्फोट होने के पहले, उसी प्रकार, पृथ्वी हिल उठी। सपाट जमीन पर भी जाती हुई गाड़ियाँ उलट गईं; मकान गिरने लगे और उनके भीतर से मनुष्य भागने लगे; समुद्र किनारों से कोसों दूर हट गया; अनन्त जलचर सूखी जमीन में पड़े रह गये। यह हो चुकने पर विस्यूवियस ने अपने पेट के पदार्थ वमन करना आरम्भ किया। प्रलय काल के मेघ के समान भाफ की घोर घटा हाहाकार करते हुए उस के मुँह से निकलने लगी। ठहर ठहर कर सैकड़ों वज्रपात के समान महाप्रचण्ड गड़गड़ाहट प्रारम्भ हुई।