नहीं सँभाल सकतीं तब गिर जातीं हैं और उनके ऊपर वाले
भूभाग उन्हीं के साथ इस वेग से नीचे की कन्दराओं में जा
पड़ते हैं कि उनके गिरने से बड़ी ही भीषण गरमी पैदा हो
जाती है। इसे गरमी नहीं, प्रचण्ड ज्वाला कहना चाहिए।
यदि ये घटनायें कहीं समुद्र के पास हुईं और समुद्र का
जल दरारों से होकर वहाँ तक पहुँच गया तो उसकी भाफ
हो जाती है। यह भाफ ऊपर निकलने की कोशिश करती
है और यदि कहीं थोड़ा भी मार्ग निकलने वाला मिल गया
तो हाहाकार करती हुई पृथ्वी के ऊपर आ जाती है। वही
ज्वालामुखी पर्वत हो जाते हैं। जिस समय पृथ्वी के पेट
की यह भीषण गरमी और भाफ उपर निकलने की कोशिश
करती है, उस समय उसका वेग भीतर ही भीतर दूर तक
फैल जाता है और पृथ्वी कँपने लगती है। इसी को भूकम्प
कहते हैं। पर ऊपर निकलने की जगह मिल जाने से कम्प
बन्द हो जाता है और ईट, पत्थर, राख, भाफ और गली
हुई चीज़ों के समूह बड़े ही हृदय-विदारी शब्द करते हुए
ज्यालामुखी के मुँह से निकलने लगते हैं।
ज्वालामुखी पर्वतों के होने के कई एक वैज्ञानिक कारण
बतलाये जाते हैं; परन्तु भाज कल पूर्वोक्त कारण अधिक
मान्य समझा जाता है। इस लेख के पूर्वोक्त में लिखा जा
चुका है कि कुछ दिनों से इटली का विख्यात ज्वाला-गर्भ
पर्वत, विस्यृवियस, फिर ज्वाला उगलने के लक्षण दिखला