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प्रबन्ध-पुष्पाञ्जलि

खबर उनको भी न थी। एकाएक भूमि कम्प हो कर विस्यूवियस के मुंँह से आग, पत्थर, राख और भाफ की वर्षा भारम्भ हो गई।

विस्यूवियस के और कई स्फोटों की तरह यह स्फोट भी बहुत भयानक था। इस में पत्थरों की बेहद बर्षा हुई। उस के डर से हज़ारों आदमी भाग भाग कर विशेष मज़बूत घरों में जा छुपे; पर राव और पत्थरों की इतनी मोटी तह मकानों की छतों पर जमा हो गई कि उस के वज़न से छत गिर पड़ी और आदमी नीचे दब कर मर गये। जो बस्तियाँ पर्वत के नीचे, थोड़ी थोड़ी दूर पर, थीं, उनका तो एकदम ही संहार हो गया। वे बिलकुल ही ध्वन्स हो गई। बड़े बड़े कसबे, समूचे के समूचे, नष्ट हो गये---कोई जल गये, कोई राय पत्थरों के नीचे दब गये, कोई गिर कर भूमिसात् हो गये। मनुष्यों और पशुओं का कितना नाश हुआ, इसका हिसाब लगाना कठिन है। कोसों तक जहाँ खेत, वाटिकायें और अङ्गुर के बाग खड़े थे, वहाँ हरियाली की जगह ख़ाक बिछ गई।

विस्यूवियस के एक शिखर पर जो बेधशाला है वह ऐसी जगह है और इतनी मजबूत है कि १८७२ ईसवी के स्फोट से भी उसे कम हानि पहुँची थी और इस बार इससे भी कम ही पहुंँची है। वहाँ के अध्यक्ष, अध्यापक मटूकी, स्फोट के समय, बेधशाला के किवाड़ और खिड़कियाँ बन्द किये हुए