झूठ का नमूना नहीं है तो क्या है? यही नमूना लड़कों को झूठ बोलना सिखला देता है। एक तरफ़ तो वह यह सिखाती है कि आदमी को आत्म-संयमन करना चाहिए---अपने आप को काबू में रखना चाहिए---दूसरी तरफ़ ज़रा ज़रा सी बात के लिए वह अपने छोटे छोटे बच्चों पर बिगड़ उठती है और क्रोध करती है। क्या इसी का नाम आत्म-संयमन है? जिस तरह बड़े होने पर संसार के सारे व्यवसायों में भले-बुरे कामों का भला-बुरा परिणाम होने देना शिक्षा का सब से अच्छा तरीका है---स्वाभाविक रीति पर ऐसे परिणामों से फिर चाहे जितना सुख या दुःख हो---उसी तरह लड़कपन में बच्चों को सुमार्गगानी बनाने के लिए उनको जो शिक्षा दी जाय उसमें भी उसी तरीक़े से काम लेना चाहिए और बच्चों के भले-बुरे कामों का भला या बुरा परिणाम होने देना चाहिए। परन्तु बेचारी माँ को इस तरह की शिक्षा के तरीके का स्वप्न में भी ख्याल नहीं होता। कार्य कारण भाव का निश्चय न होने से, अर्थात् बच्चे के पालन-पोषण से सम्बन्ध रखने वाली शिक्षा यथा शास्त्र न प्राप्त करने से, और बच्चों के मन के जुदा जुदा भावों का ज्ञान न होने के कारण उन भावों के अनुसार बच्चों के साथ बर्ताव करने का सामर्थ्य उसमें न होने से, वह मनमाने तरीके से उन्हें रखती है। आज वह अपने बच्चे से एक तरह का बर्ताव करती है, कल और
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