ऐसे कामों से बच्चे को हानि पहुँचेगी। वह नहीं जानती कि उसका रोकना हानिकर है। इस तरह की रुकावट से बच्चा ना-खुश रहता है; वह चिड़चिड़ा हो जाता है; और लाभ के बदले उसे ज़रूर हानि पहुँचती है। बच्चे के साथ इस तरह पेश आने से माँ बेटे में वैमनस्य हो जाता है और परस्पर जैसा स्नेह रहना चाहिए नहीं रहता। जिन कामों को माँ अच्छा समझती है उन्हें वह धमकी या लालच देकर बच्चे से कराती है। अथवा वह बच्चे को यह सुझाती है कि ये काम करने से सब लोग तुम पर खुश होंगे और तुम्हारी तारीफ़ करेंगे। इस तरह वह उससे वे काम कराती है। बच्चे के मन की वह बिलकुल परवा नहीं करती। ऊपरी मन से यदि बच्चे ने उसका कहना मान लिया तो इतने ही से वह कृतार्थ हो जाती है। वह समझती है कि बस मेरा कर्तव्य हो चुका। इस तरह के बर्ताव से बच्चे को कई अच्छी शिक्षा तो मिलती नहीं--वह कोई अच्छी बातें तो सीखता नहीं---हाँ दम्भ, डर और खुदगरज़ी का शिक्षा उसे मिल जाती है। एक तरफ तो वह बच्चे को सच बोलने की शिक्षा देती है, दूसरी तरह वह खुद अपने ही बर्ताव से झूट के नमूने उसके सामने रखती है। वह बच्चे से कहती है कि यदि तुम सच न बोलोगे तो मैं तुमको यह सजा दूँगी, वह सजा दूँगी। पर जब बच्चा झठ बोलता है तब अपने कहने के मुताबिक वह सज़ा नहीं देती। यह
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