देते। इसी से प्रत्यक्ष रीति से जानी जाने लायक़ बातों को भी वे अप्रत्यक्ष रीति से लड़कों को सिखलाते हैं। थोड़ी उम्र में जो ज्ञान लड़कों को आप ही आप होता रहता है वह बड़े महत्त्व का है---वह अनमोल है। लड़कपन में लड़कों को बुद्धि बहुत शोधक होती है। बुद्धि की यह शोधकता-ज्ञान प्राप्त करने की यह लालसा--उनमें स्वाभाविक होती है। वह आप ही आप पैदा होती है। पर शिक्षक महाशय इस स्वभावसिद्ध ज्ञान-लिप्सा पर धूल डालते हैं। लड़कपन में बच्चे बड़े कौतूहल और ध्यान से हर एक बात को देखते हैं और उसके विषय में पूछ पाछ करते हैं। उनके कौतूहल का निवारण न करके उसे रोक देना या सुनी अनसुनी कर जाना बहुत बुरा है। उनकी ज्ञान-लिप्सा का प्रतिबन्ध करना बहुत हानिकारी है। प्रतिबन्ध न करके उसे और उत्तेजना देना चाहिए। लड़के जिस बात को पूछें उसे बताना चाहिए। वे जिस चीज़ के विषय में कोई बात जानना चाहें उसका यथा सम्भव पूरा पूरा और सच्चा हाल उनसे कहना चाहिए। परन्तु शिक्षक ऐसा नहीं करते। वे करते क्या है कि जो बातें लड़कों की समझ के बाहर हैं और जिनको सीखना उनको नागवार मालूम होता है उन्हीं को लड़कों की आँखों के सामने लाने और उनके दिमाग में भरने का वे यत्न करते हैं। वे वैसी बातें लड़कों को सिखलाने की कोशिश करते हैं जिन्हें सीखने में
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