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शिक्षा

ही में पढ़ाई जाती हैं। इस तरह की मुदी बातें सीखने में लड़कों का मन नहीं लगता और उनका बहुत सा समय नष्ट जाता है। इन बातों को, कुछ दिन बाद, लड़कों के जरा बड़े होने पर, सिखलाना चाहिए। इनका सम्बन्ध समाज से है। अतएव सामाजिक शिक्षा के साथ इनकी शिक्षा होनी उचित है। इस तरह की भूगोल-विद्या तो इतना जल्द शुरू कर दी जाती है; पर प्राकृतिक भूगोल अर्थात् वह विद्या जिस में पृथ्वी के आकार और रूप आदि का वर्णन रहता है और जिस के सीखने में लड़कों का मन लगता है और जो उनकी समझ में भी आ सकती है, प्राय: नहीं सिखलाई जाती। उसे सिखलाने की बहुत कम कोशिश होती है। प्रत्येक विषय सिखलाने का क्रम ठीक नहीं। जितने विषय हैं उनकी शिक्षा में नियमों की प्रायः बिलकुल ही परवा नहीं की जाती। कौन विषय किस कायदे से सिखलाना चाहिए, इस बात पर बहुधा कोई ध्यान नहीं देता। परिभाषा, व्याख्या, नियम और सिद्धान्त पहले ही सिखला दिये जाते हैं। पर जिन चीज़ों के विषय में ये बात सिखलाई जाती हैं; उनसे लड़कों की, तबतक, प्रत्यक्ष पहचान ही नहीं होता, वे उन्हें देख ही नहीं पाते। चाहिए यह कि ये बातें, सृष्टिक्रम के अनुसार, उदाहरणों के द्वारा, सिखलाई जायँ। संसार में प्रत्येक चीज़ को देखने के बाद जिस क्रम से उसके प्रत्येक